गजल
दिल मे शोले और आग अगर हो… तो ग़ज़ल होती है,
आँख किसी दीवाने की तर हो… तो ग़ज़ल होती है।
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वो जो मेरे कूचे से गुज़रे तो मेरा चेहरा हो मेहताब,
और फिर उनकी लचकती कमर हो… तो ग़ज़ल होती है।
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यूँ तो आता है मुझे बाकायदा हौसलों से उड़ना यारों,
फिर उसपे भी गमज़दा जिग़र हो…तो गज़ल होती है।
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दुनिया क्या है ग़मों की पूरी खान है,
सामने आँखो के गम-ए-मंजर हो… तो ग़ज़ल होती है।
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चेहरा क्या है उसका जैसे खिलता गुलाब है “उज्जैनी”
और उसपर भी सजती लाल चुनर हो… तो ग़ज़ल होती है…
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