कहीं मिर्च से तीखे टमाटर तो कहीं बिन कांटे की मछली, लैब में बन रहा है आपका फ्यूचर फ़ूड
वैज्ञानिकों ने ऐसा केला विकसित किया है, जिसमें विटामिन-ए की मात्रा सामान्य केले से दोगुना होगी. यह केला पपुआ न्यू गीनिया में पाया जाता है, इस केले की जीन लेकर वैज्ञानिक इसे बना रहे हैं. 2025 तक इसके बाज़ार में आ जाने की उम्मीद है.
टमाटर या मिर्च
वैज्ञानिक अब ऐसा टमाटर बना रहे हैं जो मिर्च की तरह तीखा होगा. असल में टमाटर मिर्च के मुकाबले ज्यादा आसानी से और ज्यादा मात्रा में उगते हैं. इसलिए वैज्ञानिक अब तमातार को ही मिर्च में बदलने जा रहे है ताकि मिर्च की पैदावार बढ़ सके. टमाटर में कैपसाइसिनॉइड्स होता है, जो मिर्च को तीखा बनाता है. वैज्ञानिक इसे जीन एडिटिंग की मदद से टमाटर में सक्रिय कर रहे हैं. कैपसाइसिनॉइड्स वजन घटाने में भी मददगार है. यह टमाटर इसी साल के अंत से मिलना भी शुरू हो जाएगा.
बिना कांटे की मछलियाँ
अमेरिका की कंपनी ब्लनालू और फिनलेस फूड्स सेल बेस्ड सीफूड पर काम कर रही हैं. यानी ये किसी खास मछली या दूसरी जलीय जीव से कोशिका लेंगे और उसे लैब में विकसित करेंगे. ख़ास बात ये है कि इस सी फूड में सिर, पैर और हड्डी जैसी चीजें नहीं होंगी. ये एक प्लास्टिक की शीट की तरह होगा.
कितना भी काटो रंग नहीं बदलेगा सेब
सेब काटने के तुरंत बाद अगर खाया नहीं गया तो वो काला या भूरा पड़ने लगता है. इससे बड़ी तादाद में सेब की बर्बादी होती है. अब ऐसा सेब तैयार कर लिया गया है, जो काटने के बाद भी भूरा नहीं पड़ता. फिलहाल यह सेब अमेरिका में उपलब्ध है. यूरोप में भी इसे अप्रूवल मिलने की बात चल रही है. संभव है कि ये एक-दो साल में यूरोपियन और दूसरे बाजारों में उपलब्ध हो.
लैब में बनेगा मीट
दुनिया के कई स्टार्टअप इस समय लैब में मीट बनाने पर काम कर कर रहे हैं. भारत में भी आईआईटी गुवाहाटी में लैब में मांस तैयार कर लिया गया है. हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्युलर ऐंड मोलिक्यूलर बायोलॉजी और नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन मीट भी मीट का उत्पादन कर रहा है.
यानी भविष्य के भोजन खेतों में कम और लेबोरेटरी और फैक्ट्री में ज्यादा उगेंगे.