टीम इण्डिया में सेलेक्शन के लिए कठोर प्रशिक्षण से गुजरे चाहर ब्रदर्स की कहानी
सूरतगढ़ राजस्थान के गंगानगर जिले का एक छोटा सा शहर है। 2004 से यहां क्रिकेटर बनने का सपना युवाओं के बीच आकार ले रहा था, लेकिन इस जुनून को पूरा होने में समय लगा। इस शहर में रहने वाले वायु सेना के सार्जेंट लोकेंद्र चाहर ने अपने बेटे दीपक के लिए क्रिकेट में करियर का सपना देखा था। दीपक चाहर और उनके चचेरे भाई राहुल चाहर वेस्टइंडीज के खिलाफ टी-20 सीरीज में टीम इंडिया का हिस्सा हैं।
दीपक चाहर के पिता लोकेंद्र कभी बड़े स्तर पर क्रिकेट नहीं खेल पाए। लेकिन वे चाहते थे कि उनका बेटा खेले। उन्होंने खुद को पीछे किया और बेटे के लिए सपने देखे। तब उन्हें यह भी नहीं पता था कि क्रिकेट में कोच से कैसे संपर्क किया जाता है। लेकिन उन्होंने सब कुछ अपने बेटे के लिए सीखा।
वकार यूनुस और डेल स्टेन के फैन
क्रिकेट में लोकेंद्र के नायक रहे हैं- वकार यूनुस, डेल स्टेन और मैल्कम मार्शल। लोकेंद्र ने बेटे के लिए एयर फोर्स कॉम्पलेक्स में ही क्रिकेट के प्रशिक्षण की व्यवस्था की, क्योंकि वह एकेडमी नहीं खोल सकते थे। वह अपने कुछ ऐसे साथियों को बुलाते जो बड़े स्तर पर क्रिकेट खेलते हैं। दीपक उन्हें गेंदबाजी करते।
12 साल की उम्र से गेंदबाजी कर रहे हैं दीपक
लोकेंद्र याद करते हुए बताते हैं, ”उस समय दीपक की उम्र 12 साल थी और काम के बाद रात में हम अभ्यास करते। शुरू में काफी समस्याएं आईं। 7-8 हजार रुपए प्रति माह खर्च करने होते। कभी-कभी ये 10 हजार भी हो जाते। मैंने प्रशासन से इस एरिया में प्रशिक्षण की अनुमति ली।”
दीपक कम से कम 500 बॉल फेंकते थे
वह बताते हैं, ”लगभग आधा पैसा क्रिकेट गेंद खरीदने में खर्च हो जाता। हम हर तरह की गेंद खरीदते। ताकि हर तरह की गेंद से अभ्यास किया जा सके। हम पंजाब और मेरठ से गेंदें खरीदते। हमारा फोकस शुरू से ही स्विंग पर रहा। बिना किसी कोचिंग के मुझे इस बात का अंदाजा था कि स्विंग अहम होती है। दीपक क्रीज पर खड़े होकर ही कम से कम 500 गेंदें फेंकता और अपनी कलाइयों का प्रयोग करता।”
वह बताते हैं, ”मैं स्टंप्स के पीछे खड़ा रहता। जल्दी ही वह स्विंग करना सीख गया। कभी-कभी हम कैमरे में यह सब रिकॉर्ड करते। राजस्थान में उससे अधिक कोई गेंद को स्विंग नहीं कर सकता था। इसके बाद हमने नियंत्रण और एक्युरेसी पर काम किया।” यह व्यवस्था दो साल तक चली, लोकेंद्र के एयर फोर्स छोड़ने तक।
नवेंदु त्यागी ने की काफी मदद
दीपक के पिता आगे बताते हैं, ”मैंने नौकरी छोड़ दी क्योंकि मेरा ट्रांसफर दक्षिण में हो गया था। क्योंकि ऐसा करने से दीपक राजस्थान के लिए नहीं खेल पाता। मैं नौकरी छोड़ कर अपने बच्चों के साथ आगरा आ गया। उस समय हनुमानगढ़ जिले की क्रिकेट बॉडी के सचिव नवेंदु त्यागी थी। उन्होंने सूरतगढ़ में हमारे रहने के दौरान हमारी काफी मदद की। बाद में त्यागी दिल्ली आ गए। वह मैचों का आयोजन करते और बच्चों को फिटनेस पर ध्यान देते। हनुमानगढ़ में उनके शिविर को काफी कठिन माना जाता था। वहां बहुत कम सुविधाएं थीं।”
आगरा आकर दीपक के पिता ने खोली एकेडमी
चाहर महीने में 8-10 बार स्कूटर से हनुमानगढ़ जाते। लोकेंद्र 2006 में जब नौकरी छोड़कर आगरा आए तो उनकी उम्र सिर्फ 37 साल थी। तब उन्होंने अपनी अकादमी खोली। इसमें 15-20 बच्चे थे। उन्होंने इसके लिए मित्रों से 8-10 लाख रुपए उधार लिए। वह बताते हैं, ”हमने टर्फ विकेट और सीमेंट विकेट बनवाई। हमने कॉलेज का मैदान लिया, जिस पर मैटिंग कराई। बच्चे स्कूटर पर मैट ले जाते।
दीपक के कहने पर राहुल बने लेग स्पिनर
लोकेंद्र के भतीजे राहुल चाहर की उम्र उस समय केवल 8 साल थी। वह दीपक से सात साल छोटे थे। राहुल लोकेंद्र के छोटे भाई ब्रजराज के बेटे हैं। दीपक उस समय अंडर 15 में राजस्थान के लिए खेल रहे थे। राहुल भी तेज गेंदबाज बनना चाहते थे, लेकिन दीपक ने अपने पिता को उसे लेग स्पिनर बनने की सलाह दी। इस सलाह ने काम किया और क्रिकेट में राहुल का भी करियर बनने लगा।
फिटनेस पर था चाहर ब्रदर्स का ध्यान
दीपक ने आठवीं के बाद और राहुल ने चौथी के बाद रेग्युलर स्कूलिंग नहीं की है, क्योंकि फिटनेस पर ध्यान देना था। दीपक और राहुल दोनों ही पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे, लेकिन लोकेंद्र 3-4 घंटे फिटनेस पर जोर देते थे। साथ ही जिम और स्विमिंग भी चलती थे। उनकी दिनचर्या सुबह 8 बजे से शुरू होकर रात 12 तक चलती थी। दीपक चाहर ने 2010 में रणजी में हैदराबाद के खिलाफ डेब्यू में 8 विकेट लिए। 2016 में उन्हें आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स ने चुन लिया। 2018 में उन्होंने पहला वनडे देश के लिए खेला। राहुल चाहर को 2017 में आईपीएल में मौका मिला। 2019 में उन्होंने पूरा सीजन मुंबई इंडियंस के लिए खेला।
राहुल चाहर को काटनी पड़ी कुल्हाड़ी से लकड़ी
दीपक के पिता लोकेंद्र ने बताया, ”जब राहुल ने खेलना शुरू किया। वह काफी कमजोर था, लेकिन उसने अपनी फिटनेस पर काफी ध्यान दिया। राहुल कम उम्र और कमजोर होने के बाद भी दीपक जैसी फिटनेस चाहता था। वह एक तेज गेंदबाज सा रूटीन फॉलो करता था। वह 50-60 फीट गहरे पानी के टैंक की सीढ़ियां उतरता-चढ़ता था। टायर पुलिंग, साइकलिंग के साथ-साथ उसने कुल्हाड़ी से लकड़ियां भी काटी हैं।”
ब्रह्म मुहूर्त में जागते थे श्रीराम, जानें फायदे ( Brahma muhurta ke Fayde) , देखें यह वीडियो
हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें।