सालों सँभलना है एक पल में बहक जाना है
सालों सँभलना है एक पल में बहक जाना है,
दिल क्या हाथों से रेत सर-सर सरक जाना है।
*********
नाज़ करता है शजर *जिस समर *पे इतना यारों,
पकने तक रिश्ता फिर डाल से छिटक जाना है।
*********
नज़रें झुका के चलना नज़रें बचा के चलना कुछ कर,
जिस दिन मिलेगा वो उस दिन नज़र को नज़र से अटक जाना है।
*********
ना हिन्दु, ना मुस्लिम ना बच्चे पैदा होते मजहब साथ लेकर,
चार कदम चलकर मजहब की गलियों में भटक जाना है।
*********
जब तक दिमाग चलता है काम अच्छे ही करना भाई,
साठ बरस के ऊपर हम सब का ही सटक जाना है।
*********
ये माना ज़ालिम कि हिरणी सी चाल है तुम्हारी,
इतनी भी ना यूं लचको कि हर दिल को मचल जाना है।
*********
तेरे समझाने से “उज्जैनी” यूँ भी कौन समझता है,
ये छठी के बिगड़े हैं इनको तो फिर से बहक जाना है।
*पेड़
^फल
******