ग़ज़ल : इस आशिकी को मौत से भी ठान लेने दो | राजीव रंजन झा
ये दुनिया जानती है तो उसे पहचान लेने दो
उसे हक है वो जो माने उसे बस मान लेने दो
सलाखों की हदें कितनी पता है ये मुहब्बत को
दरो दीवार को औकात अपनी जान लेने दो
कफन सर पर चढा कर प्यार के रस्ते खड़ा हूँ मैं
जरा इस आशिकी को मौत से भी ठान लेने दो
हया खुद ही नहीं जिनमें वही दुश्मन बने बैठे
ये बुजदिल हैं इन्हें बन्दूक अपनी तान लेने दो
कठिन राहें बहुत तो क्या हमें भी फख्र उल्फत पर
निशाने जो लगाये हैं उन्हें संधान लेने दो
नहीं उसको पता भाषा लिखी दिल पे मेरे जो भी
घृणा से ही सही उल्फत उसे अनुमान लेने दो
मिटे हस्ती भले राजीव मिटने प्यार मत देना
ये दुश्मन चाहता है गर तो इक बलिदान लेने दो
(बहरे हजज)
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