बिना चुनाव लड़े ही सुषमा स्वराज की जगह ले ली एस जयशंकर ने
नरेंद्र मोदी ने NDA के दूसरे कार्यकाल के लिए बतौर प्रधानमंत्री 30 मई को शपथ ली. उनके अलावा 57 मंत्रियों ने भी शपथ ली. इनमें से ज्यादातर चेहरे जाने-पहचाने हैं. लेकिन, एक नाम ऐसा भी आया जो सबको चौंका गया. ये हैं पूर्व विदेश सचिव सुब्रमण्यम जयशंकर. जयशंकर को मोदी ने न केवल सरकार में शामिल किया,बल्कि सीधे कैबिनेट मंत्री बना दिया. उन्हें विदेश मंत्रालय दिया गया है. जयशंकर ने न लोकसभा चुनाव लड़ा और न ही वो राज्यसभा से सांसद हैं. ये शायद पहली बार होगा कि किसी ब्यूरोक्रेट को चुनावी राजनीति के अनुभव के बिना सीधे कैबिनेट मिनिस्टर बना दिया गया हो और विदेश मंत्रालय जैसा बड़ा ओहदा भी दे दिया गया हो.
कौन हैं जयशंकर
सुब्रमण्यम जयशंकर का परिवार मूल रूप से तमिलनाडु से है. जन्म और परवरिश दिल्ली में हुई. जयशंकर की स्कूली शिक्षा एयरफोर्स स्कूल से हुई और फिर दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज में दाखिला लिया. इसके बाद जयशंकर पहुंचे जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU). यहां पॉलिटिकल साइंस से MA की डिग्री हासिल की. जयशंकर के बारे में बताते हैं कि वो IIT दिल्ली में दाखिला लेने पहुंचे थे, लेकिन पास में JNU का कैंपस था और वहां खूब भीड़ थी. उन्होंने भीड़ देखी, तो वहां चले गए. फिर JNU में ही दाखिला ले लिया. जयशंकर ने इंटरनेशनल रिलेशंस में एम.फिल पूरी की. और फिर PhD की डिग्री भी हासिल की है. जयशंकर ने जापानी मूल की क्योको जयशंकर से शादी की है.
सर्विस रेकॉर्ड
एस. जयशंकर 1977 में भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी बने थे. पहली पोस्टिंग 1979 से 1981 तक सोवियत संघ (आज का रूस) के भारतीय दूतावास में रही. फिर 1981 से 1985 तक वे विदेश मंत्रालय में अंडर सेक्रेटरी रहे. 1985 से 1988 के बीच वे अमेरिका में भारत के फर्स्ट सेक्रटरी रहे. श्रीलंका में भारतीय शांति सेना (पीस कीपिंग मिशन) के राजनैतिक सलाहकार के तौर पर काम किया. 1990 में उन्होंने हंगरी के बुडापेस्ट में कर्मशल काउंसलर की पोस्ट संभाली.
इसके बाद वो भारत लौटे और तीन साल तक पूर्वी यूरोप के मामलों को देखते रहे. 1996 से 2000 तक जापान में राजदूत रहे और इसके बाद 2004 तक चेक रिपब्लिक में भारत के राजदूत का पद संभाला. चेक रिपब्लिक से लौटने के बाद उन्हें तीन साल तक विदेश मंत्रालय में अमेरिकी विभाग की जिम्मेवारी सौंपी गई. 2007 में उन्हें बतौर इंडियन हाई कमिश्नर सिंगापुर भेजा गया. 2009 से 2013 तक वो चीन में भारत के राजदूत रहे. चीन के बाद उन्हें अमेरिका में भारत का राजदूत बनाया गया.
बतौर डिप्लोमैट बहुत अच्छा रेकॉर्ड है
जनवरी 2015 में केंद्र सरकार ने उन्हें विदेश सचिव बनाया था. ये घोषणा उस वक्त हुई थी जब बतौर IFS उनकी सेवा समाप्त होने में सिर्फ 72 घंटे बाकी थे. उस वक्त जयशंकर अमेरिका में भारत के राजदूत थे. वो 2013 से 2015 तक अमेरिका में भारत के राजदूत रहे. इससे पहले वो चीन में सबसे लंबे समय तक भारत के राजदूत रह चुके हैं. जानकार जयशंकर को ऐसा डिप्लोमैट मानते हैं जो मॉस्को, पेइचिंग और वॉशिंगटन डी. सी. के साथ-साथ दक्षिण एशियाई इलाके को भी अच्छी तरह समझते हैं. वो भारत के आर्थिक हितों के साथ-साथ सुरक्षा क्षेत्र की ज़रूरतों को भी अच्छी तरह समझते हैं.
मनमोहन सरकार में भी काफी प्रभाव
UPA सरकार के दौरान अमेरिका के साथ हुई न्यूक्लियर डील में भी जयशंकर की असरदार भूमिका थी. वो 2004 से 2007 तक भारतीय विदेश मंत्रालय में बतौर संयुक्त सचिव काम कर रहे थे. ये वो दौर था, जब भारत और अमेरिकिा के बीच असैन्य परमाणु समझौते के लिए बातचीत चल रही थी. जयशंकर ने इस डील को पूरा करवाने में अहम भूमिका निभाई थी. उनकी कार्यशैली के चलते पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी उनको खासा पसंद करते हैं.
मोदी के ‘फॉरेन एक्सपर्ट’
2014 के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र की राजनीति में नए थे. विदेश और रक्षा जैसे मंत्रालय उनके लिए नई चीज थी. यहां जयशंकर ने मोदी के साथ फॉरेन पॉलिसी एक्सपर्ट की तरह काम किया और विदेश नीति तय करने में अहम भूमिका निभाई. जानकार बताते हैं कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ब्यूरोक्रेसी के दो पॉवर सेंटर थे. एक, अजित डोभाल और दूसरे, एस जयशंकर. हालांकि चर्चा अजित दोभाल की ज्यादा होती थी. दोनों सेंटर मोदी की कार्यशैली के मुताबिक काम करते थे. इसीलिए डोभाल के साथ-साथ मोदी को जयशंकर भी पसंद थे.
जयशंकर पर मेहरबान मोदी
जयशंकर को 2015 में रिटायर होना था. मगर 2015 में मोदी सरकार ने उन्हें दो साल का सेवा विस्तार देते हुए विदेश सचिव नियुक्त किया. इसके हिसाब से उन्हें 2017 में रिटायर हो जाना था. मगर फिर मोदी सरकार ने उन्हें एक और साल का सेवा विस्तार दिया. दो बार मिले सर्विस एक्सटेंशन के बाद आखिरकार जयशंकर 28 जनवरी, 2018 को रिटायर हुए.
मगर एक और मामला ऐसा है, जहां मोदी जयशंकर पर मेहरबान होते दिखे हैं. नौकरशाहों को अपनी नौकरी पूरी करने के बाद कूलिंग-ऑफ- पीरियड पूरा करना पड़ता है. कूलिंग-ऑफ-पीरियड मतलब नौकरशाह अपनी नौकरी पूरी करने के एक साल बाद तक किसी भी ऐसे पद या प्रभाव में काम नहीं कर सकते, जिसका भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश मामलों में कोई दखल हो. पहले कूलिंग-ऑफ-पीरियड दो साल का होता था. लेकिन मोदी सरकार ने 2015 में इसे घटाकर एक साल कर दिया.
जयशंकर को रिटायरमेंट के बाद टाटा कंपनी की ओर से ऑफर आया. कंपनी चाहती थी कि जयशंकर उनकी ग्लोबल कॉर्पोरेट टीम को लीड करें. इस पद पर काम करने के लिए जयशंकर को कूलिंग-ऑफ-पीरियड से माफी चाहिए थी. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से अपना कूलिंग-ऑफ- पीरियड खत्म करने की गुजारिश की. मोदी ने गुजारिश मानी और उन्हें बिना-कूलिंग-ऑफ पीरियड पूरा किए टाटा कंपनी के साथ जुड़ने की अनुमति दे दी. इसके बाद जयशंकर ने टाटा सन्स कंपनी के ग्लोबल कॉर्पोरेट अफेयर्स में बतौर प्रेज़िडेंट जॉइनिंग कर ली.
मई 2017 में जयशंकर ने ट्विटर जॉइन किया. वैरिफाइड अकाउंट है उनका. मगर हैंडल से आज तक एक भी ट्वीट नहीं हुआ है.