फेसबुक को अपना मोबाइल नंबर देना हो सकता है कितना खतरनाक, यहाँ जानिए

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अक्सर फेसबुक यूजर अपने ऑनलाइन एकाउंट की सुरक्षा के लिए यूजर पासवर्ड के अलावा टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं. इसमें सिक्युरिटी कोड फोन पर आ जाता है. लेकिन क्या फेसबुक जैसी कंपनी पर भरोसा किया जा सकता है. खासकर हाल में जब फेसबुक पर डाटा चोरी से लेकर अन्य कई तरह के सवाल खड़े किये जाते रहे हैं. हालांकि फेसबुक इस मामले में अपने यूजर्स को पूरी सुरक्षा उपलब्ध कराने का दावा करता है.

फेसबुक का एक सिक्युरिटी फीचर है “टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन”. फीचर का मकसद है यूजर के एकाउंट को हैकर्स से बचाना. इस सिस्टम में यूजर सबसे पहले अपने एकाउंट में लॉग-इन करता है और फिर अपना पासवर्ड डालता है. लेकिन इसके बाद यूजर की पहचान को पुख्ता करने के लिए दूसरे चरण में एक कोड यूजर के स्मार्टफोन पर भेजा जाता है. इसके बाद ही यूजर अपना फेसबुक एकाउंट एक्सेस करता है. फेसबुक के इस सिक्युरिटी फीचर में ढेर सारी खामियां हैं, जिसमें सबसे अहम है कि यह सब एक बाहर की कंपनी के प्लेटफॉर्म पर होता है. जब यूजर अपने मोबाइल नंबर को फेसबुक पर रजिस्टर करता है तो वह अपने नंबर को मार्केटिंग से जुड़ी चीजों के लिए भी इस्तेमाल करने की इजाजत दे देता है.

मार्केटिंग के अलावा, कंपनियां यूजर्स को फोन नंबर की मदद से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तलाश भी कर सकती हैं. इसका मतलब है कि अगर आपके पास किसी का मोबाइल नंबर है तो आप उसका प्रोफाइल आसानी से खोज सकते हैं. हैरानी की बात है कि इस फीचर को बंद नहीं किया जा सकता, लेकिन अपने फेसबुक फ्रेंड्स और उनकी फ्रैंड्स लिस्ट के लिए इसे सीमित किया जा सकता है. फेसबुक के हवाले से कहा गया है कि फेसबुक का यह फीचर यूजर को मोबाइल नंबर के जरिए अपने ऐसे दोस्तों को ढूंढने का मौका देता है जो उनके परिचित तो हैं लेकिन फेसबुक पर जुड़े नहीं हैं. फेसबुक का कहना है जो भी इस प्रक्रिया को गलत समझता है वह अपना मोबाइल नंबर नेटवर्क से डिलीट कर सकता है.

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इस बहस के बीच एक नया टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन फीचर लॉन्च किया गया है, जिसमें मोबाइल नंबर के बजाय किसी बाहर की कंपनी द्वारा तैयार की गई ऑथेन्टिकेशन ऐप इस्तेमाल की जाती है. ऐप इस्तेमाल को विशेषज्ञ ज्यादा सुरक्षित तरीका मान रहे हैं. वहीं फेसबुक अब भी अपने यूजर्स से टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन के इस्तेमाल के लिए कह रहा है. कुछ मामलों में विशेषज्ञ टू-फैक्टर प्रक्रिया के इस्तेमाल पर जोर देते रहे हैं. ऐसे फीचर आमतौर पर बैंकिंग में इस्तेमाल किए जाते हैं. लेकिन मोबाइल फोन के जरिए यूजर ऑथेन्टिकेशन को अब सुरक्षित नहीं माना जा रहा है क्योंकि यह फीचर काफी कुछ उस कंपनी पर निर्भर करता है जो इसे ऑपरेट करती है.

एक खामी और भी है. स्मार्टफोन पर टेक्स्ट मैसेज तब भी दिखाई देते हैं जब फोन स्टैंडबाय पर हो, साथ ही फोन पर आया सिक्योरिटी कोड से जुड़ा मैसेज इन्क्रिप्टेड मतलब किसी कोड में नहीं होता. ऐसे में हैकर्स के लिए ऐसे संदेशों को मॉनिटर करना बेहद आसान हो जाता है. ऐसी सब कमियों के चलते अब विशेषज्ञ टू-फैक्टर ऑथेन्टिकेशन के बजाय, ऑथेन्टिकेशन ऐप्स के इस्तेमाल की वकालत कर रहे हैं.
विशेषज्ञ अब कहने लगे हैं कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मोबाइल नंबर देना जोखिम भरा हो सकता है. अब कई कंपनियां यूजर से ईमेल एकाउंट सेट करने के लिए भी फोन नंबर मांगती हैं. जानकार कहते हैं कि मोबाइल नंबर किसी को पहचानने का सबसे बड़ा तरीका है. मोबाइल नंबर के जरिए कंपनियां यूजर की गतिविधियों पर नजर रख सकती हैं इसलिए डाटा पर निर्भर रहने वाली फेसबुक जैसी कंपनियां फोन नंबर पर जोर देती हैं.
फेसबुक के पूर्व चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर एलेक्स स्टामोस भी इस फीचर की आलोचना करते हैं. कुछ विशेषज्ञ तो ये भी मानते हैं कि ये फीचर राजनीतिक ताकतों का विरोध करने वाले ऐसे लोगों के लिए खतरा साबित हो सकते हैं जो गुमनाम रहना चाहते हैं.
फेसबुक के इस मॉडल के चलते जानकारों को एक और डाटा स्कैंडल का डर सताने लगा है. फेसबुक से जुड़े ऐसे खुलासे यूजर्स को असंवेदनशील बना सकते हैं, और इस वजह से हो सकता है फेसबुक डाटा सिक्योरिटी जैसी बातों पर ध्यान न दे और अपने मौजूदा बिजनेस मॉडल पर कायम रहे.

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पिछले सालों में फेसबुक के कई बड़े अधिकारियों ने कंपनी को अलविदा कह दिया है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक फेसबुक छोड़ कर गए अधिकारी डाटा सिक्योरिटी से जुड़े मुद्दों पर कंपनी के साथ सहमत नहीं थे. यहां तक कि फेसबुक में चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर का पद अब तक खाली पड़ा हुआ है. इससे कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि डाटा सिक्योरिटी जैसे मुद्दों पर फेसबुक जैसी कंपनी गंभीर नहीं है.

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