नजरें मिली, दिल धडका, और 135 करोड के हेड ट्रांसप्लांट पर पानी फिर गया
दुनिया के पहले हेड ट्रांसप्लांट यानी एक जिंदा इंसान के सिर को एक दूसरे शरीर में लगाने का एक्सपेरिमेंट फिलहाल रद्द हो गया है. इसके पीछे की वजह भी बेहद अजीब है. जिस शख्स का सिर उसके निर्जीव शरीर से निकालकर दूसरे शरीर में लगाया जाना था उसने ऑपरेशन के लिए इनकार कर दिया. इनकार के पीछे की वजह बताते हुए इस शख्स ने कहा कि उसे एक लड़की से प्यार हो गया और वो फिलहाल अपने पुराने शरीर के साथ ही जीना चाहता है.
दरअसल इटली के जानेमाने न्यूरोसर्जन सर्गियो कैनावेरो इस ऐतिहासिक हेड ट्रांसप्लांट को अंजाम देने वाले थे. उनका दावा था कि उन्होंने 30 साल इस पर रिसर्च की है और अब मेडिकल साइंस की मदद से वो दुनिया का पहला ह्यूमन हेड ट्रांसप्लांट करने के लिए तैयार हैं. ये ट्रांसप्लांट रूस के रहने वाले 33 साल के वालेरी स्पिरीडोनोव पर होना था. वालेरी एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं और उनका निचला शरीर किसी काम का नहीं बचा था. उन्होंने इस ट्रांसप्लांट में वॉलंटियर बनने के लिए सहमति दी थी. लेकिन कहानी में नया मोड तब आ गया जब वालेरी की नजरें एक लड़की से जा मिली और उन्होंने इस ट्रांसप्लांट को कराने का इरादा ही बदल दिया. ट्रांसप्लांट से ठीक पहले वालेरी स्पिरीडोनोव ने सोशल मीडिया पर फोटो डालकर बताया कि वो अमेरिका आ गए हैं. उन्हें अनास्तासिया नाम की लड़की से प्यार हो गया है. दोनों ने एक बच्चे को जन्म भी दिया है, जिसके बाद वो अब हेड ट्रांसप्लांट में हिस्सा नहीं लेना चाहते. इसके बाद न्यूरोसर्जन सर्गियो एक चीनी आदमी के साथ ये एक्सपेरिमेंट पूरा करने की बात कर रहे हैं.
ऐसे होना था ट्रांसप्लांट
ट्रांसप्लांट में वालेरी का सिर काटकर उनकी बॉडी से अलग किया जाना था और उनकी ही कद काठी और दूसरी अनुकूल विशेषताओं वाले किसी ब्रेन डेड व्यक्ति की बॉडी में लगाया जाना था. डॉ. सर्गियो ने ह्यूमन हेड ट्रांसप्लांट के इस पूरे प्रोसीजर को दो भागों में बांटा था. पहले प्रोसीजर को उन्होंने नाम दिया हेवन HEAVEN (HEad Anastomosis VENture) और उसके बाद के प्रोसीजर का नाम था GEMINI (जिसमें स्पाइनल कॉर्ड को ट्रांसप्लांट किया जाना था) इस बेहद रेयर ट्रांसप्लांट को पूरा करने के लिए दो टीम बनाई जानी थीं, जो डोनर और रिसीवर पर एक साथ काम करतीं. दोनों पेशेंट की गर्दन में गहरा चीरा लगाकर आर्टरीज, नसें और स्पाइन को बाहर निकाला जाता। जिस तरह बिजली के तारों को जोड़ा जाता है उसी तरह मसल्स को लिंक करने के लिए कलर कोड बनाए जाते. पेशेंट्स की गर्दन काटने के लिए एक करोड़ 30 लाख रुपए की कीमत वाली डायमंड नैनोब्लेड का इस्तेमाल किया जाना था. यह नैनोब्लेड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस ने बनाई थी. दोनों पेशेंट की गर्दन कट जाने के घंटे भर के अंदर ही वॉलंटियर की गर्दन को डोनर के धड़ में जोड़ने की प्रोसेस शुरु की जाती.
पंप होता रहता खून
डोनर का धड़ शरीर से अलग रहने पर भी उसे जीवित रखने के लिए आर्टिफिशियल तरीक से खून पंप किया जाना था. खून कितना पंप करना है इसका निर्धारण बॉडी के बीपी के आधार पर किया जाना था. इससे सिर शरीर से अलग होने के बावजूद भी आदमी जिन्दा रह सकता है. इसके बाद प्लास्टिक सर्जन की टीमें स्किन को सिलने और जोड़ने का काम करतीं. ऑपरेशन पूरा होने के बाद नए शरीर को 3 दिन तक सर्वाइकल कॉलर लगाकर आईसीयू में रखा जाना था.
इतना आना था खर्च
साल के अंत में होने वाले इस ऑपरेशन को तीन दिन में होना था. जबकि इसपर संभावित खर्च करीब 135 करोड़ रु था. इसके लिए 150 लोगों की टीम बनाई गयी थी, जिसमें डॉक्टर्स, नर्सेस, टेक्नीशियन्स, सायकोलॉजिस्ट्स और वर्चुअल रिएलिटी इंजीनियर्स शामिल थे. अगर ये ऑपरेशन होता है और उससे भी बड़ी बात कि यह सफल होता है, तो ये मेडिकल साइंस के क्षेत्र में यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा. ये बिलकुल वैसा ही होगा जिस तरह हमारे पुराणों में भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर प्लांट करने की बात कही जाती है. इससे कई लोगों को नया जीवन मिल सकता है. फिलहाल इस हेड ट्रांसप्लांट के होने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. हालांकि, न्यूरोसर्जन सर्गियो इसे जल्द ही पूरा करने का दावा कर रहे हैं.