सिखों के लिए क्यों महत्त्व रखता है पकिस्तान का करतार साहिब गुरुद्वारा
पाकिस्तान के नारोवाल पंजाब प्रांत में स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर वाहे जगह है जहाँ सिख समुदाय के पहले गुरु नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम 18 साल बिताए थे. सिखों के गुरु नानक देव ने ही करतारपुर को बसाया था और इसी स्थान पर गुरु नानक देव ने 1539 में अपनी अंतिम सांस ली थी. केन्द्र सरकार ने गुरुवार को गुरुनानक जयन्ती के अवसर को देखते हुए इस गुरुद्वारे तक पहुँचने के लिए कॉरीडोर बनाने की मंजूरी दी. ऐसा करने से सिख समुदाय के लोग बिना वीजा भी करतारपुर जा सकेंगे. अंतर्राष्ट्रीय सीमा से 4 किलोमीटर दूर स्थित यह गुरुद्वारा गुरुदासपुर के डेरा बाबा नानक से भी नजर आता है. इसलिए यहाँ आकर सिख समुदाय के लोग दूरबीन की मदद से इस तीर्थ स्थल के दर्शन करते हैं. करतारपुर गुरुद्वारा साहिब का निर्माण 135600 रूपए की लागत से किया गया था. यह राशि तब पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने दी थी. 1995 में पकिस्तान सरकार ने इसकी मरम्मत कराई और 2004 में इसे पूरी तरह से संवारा गया था. कहा जाता है कि सबसे पहले इसी जगह पर लंगर की शुरुआत की गयी थी. गुरुनानक देव ने गुरु का लंगर एक ऐसी जगह बनायीं है जहाँ स्त्री और पुरुष बिना किसी भेदभाव के साथ साथ भोजन करते हैं.