क्या है पैदाइशी दिल की बीमारी या दिल में छेद होना

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दिल में छेद होना, दिल से जुड़ी पैदाइशी बीमारी में सबसे आम बीमारी है. इसे कंजेनाइटल हार्ट डिजीज भी कहते हैं, जो मां के पेट में ही बच्चे के ग्रोथ के साथ जुड़ी है. “पैदाइशी हृदय रोग” यह कहने का एक तरीका है कि जब आप पैदा हुए थे तो आपके दिल में कोई समस्या थी. लेकिन इसका मतलब केवल दिल में सूराख होने से नहीं लगाया जा सकता. वो दिल में एक छोटा छेद भी हो सकता है या कुछ और गंभीर बीमारी भी. नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन की 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर एक हजार लोगों में 19.14 लोग पैदाइशी दिल की बीमारी से पीड़ित होते हैं.

कंजेनाइटल हार्ट डिजीज के प्रकार

हार्ट वाल्व में समस्या- इसमें हार्ट वाल्व बहुत सिकुड़ जाती है या पूरी तरह से बंद हो सकती है. इस कारण खून का पास होना मुश्किल हो जाता है और कई बार तो ऐसा होता है कि खून इससे होकर जा ही नहीं पाता है. कुछ मामलों में हार्ट वाल्व पूरी तरह बंद नहीं होता है और खून का रिसाव पीछे की तरफ होने लगता है.

हार्ट वॉल्स (चैम्बर) में समस्या – इस समस्या में दिल के दो चैंबर (एट्रिया और वेंट्रिकल्स) के बीच हो सकता छेद या छोटा हिस्सा खुला रह जाता है. इस कारण लेफ्ट और राइट हार्ट के साफ खून और दूषित खून मिल सकते हैं. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए.

हार्ट की मांसपेशियों में समस्या– इस समस्या में हार्ट को पंप होने में यानी दिल के धड़कने में दिक्कत होती है. इसके कारण हार्ट फेल भी हो सकता है.
हार्ट की नलिका (वेसेल्स) में समस्या- बच्चों में इस समस्या की वजह से खून फेफड़ों में जाने की बजाए शरीर के अन्य हिस्सों में जाने लगता है. या कभी-कभी ठीक इसके उल्टा भी होने लगता है. इस वजह से खून में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और इससे ऑर्गन फेल हो सकते हैं.

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क्या हैं लक्षण –

हर बच्चे में कंजेनाइटल हार्ट डिजीज के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं. नवजात बच्चों का अत्याधिक रोना भी उनमें से एक हो सकता है. इसके अलावा मां का दूध पीने में परेशानी, खाने में परेशानी, बैठने में परेशानी जैसी चीजें भी देखने को मिलती हैं. आमतौर पर 6 महीने के बच्चे बैठने लगते हैं, लेकिन दिल की बीमारी से पीड़ित बच्चे को बैठने में भी परेशानी हो सकती है. इन लक्षणों के अलावा स्किन के कलर में भी फर्क देखा जा सकता है. जब लेफ्ट और राइट हार्ट के साफ खून और दूषित खून मिलने की समस्या रहती है, तो स्किन का रंग और उंगलियों का रंग नीला दिखता है. इस समस्या से पीड़ित बच्चे बहुत तेज-तेज सांस लेते हैं साथ ही उनमें चेस्ट इन्फेक्शन की समस्या भी ज्यादा देखी जाती है. दिल की बीमारी से पीड़ित बच्चों को तेज चलने-फिरने, व्यायाम करने में परेशानी होती है. वो भाग -दौड़ में अपनी उम्र की बच्चों से पीछे रहते हैं.

इसके कारण क्या हैं?
पैदाइशी दिल की बीमारी के प्रमुख कारणों में जेनेटिक, रिश्तेदारों की आपस में शादी जैसी चीजें भी मुख्य भूमिका निभाती हैं. कुछ ऐसी दवाईयां भी हैं जिनका प्रेग्नेंसी के वक्त प्रयोग करने से होने वाले बच्चे को दिल की बीमारी होने की आशंका रहती है. प्रेग्नेंसी के दौरान अगर मां रूबेला वायरस से संक्रमित हो जाती है, तो भी बच्चे पर उसका असर पड़ सकता है. इस दौरान मां को जो दवाइयां दी जाती हैं उनका साइडइफेक्ट बच्चों पर भी पड़ता है. पैदाइशी दिल की बीमारी के साथ और भी बीमारियां जुड़ी हैं, जो पैदाइशी होती हैं और लंबे समय तक के लिए हो सकती हैं. जैसे वजन और हाइट बढ़ने में समस्या, मेंटली रिटार्डेड होने की आशंका, बच्चों में हाइपरटेंशन, सांस से संबंधित कई तरह के इंफेक्शन बार-बार होने की आशंका आदि. हालांकि कंजेनाइटिल हार्ट डिजीज से जूझ रहे सभी बच्चों में इस तरह की समस्या नहीं होती है.

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अमेरिका में कंजेनाइटल हार्ट डिजीज से पीड़ित बच्चों की सर्जरी 5 साल की उम्र में ही कर दी जाती है. भारत में अक्सर इसकी सर्जरी बच्चों के थोडा और बड़े होने के बाद किया जाता है. इस सर्जरी में एंजियोग्राफी के जरिए अंब्रैला डिवाइस से छेद को बंद कर दिया जाता है. या अगर दिल में एक से ज्यादा परेशानियां हैं, तो ओपन हार्ट सर्जरी करते हैं. अगर बीमारी बहुत मामूली है, तो दवा से भी इलाज संभव है.

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