बिना जाने, बिना समझे करा दिया देश को बंद, यह कैसा भारत बंद
बंद को लेकर पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल रहा. कई जगहों पर हिंसा हुई. कई लोगों की जानें भी गयीं. पर लोगों ने यह भी नहीं जाना कि एससी/एसएसटी एक्ट मामले में क्या निर्णय लिया गया है और इसके लिए भारत बंद का ऐलान कर दिया. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ इस एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने की बात कही है. पर इस मुद्दे पर भारत बंद समझ से परे है. विरोध करने के कई अन्य तरीके भी थे.
नुकसान की क्षतिपूर्ति जनता के पैसों से ही होगी
सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत बंद ही कहां तक उचित है. भारत बंद करके ये लोग किसे नुकसान पहुंचा रहे हैं. क्या इससे सरकार को कोई नुकसान होता है. उपद्रवियों द्वारा सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है, जिसकी क्षतिपूर्ति सरकार को जनता के दिये रुपयों से ही करनी है. इसके अलावा असल नुकसान किसे होता है? जाहिर है आम जनता को ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. अब सबसे पहले प्रदर्शनकारी यह बताएं कि जनता के वाहनों को क्यों फूंका गया? क्या उन्होंने इस एक्ट में बदलाव की बात की थी. आम लोगों के साथ मारपीट की गयी. कुछ लोगों की जान एंबुलेंस में चली गयी. क्या एंबुलेंस में बैठे मरीज ने इस एक्ट में बदलाव की बात की थी. यदि नहीं तो फिर उन लोगों को सजा क्यों मिली. इस बंद के दौरान इसी तरह कई लोगों की जान चली गयी.
अपने लोगों के बीच भारत बंद का क्या अर्थ
अब रही भारत बंद की बात, तो इसका अर्थ अंग्रेजों के समय में तो सार्थक मालूम पड़ता था, क्योंकि इससे उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ता. ऐसा इसलिए क्योंकि वे हमारे देश को एक संसाधन की तरह इस्तेमाल कर रहे थे. मगर अपने ही लोगों के बीच भारत बंद का क्या अर्थ है. इससे नुकसान किसी अन्य को नहीं खुद को ही होना है. ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि जनता के प्रतिनिधि इस मुद्दे को संसद में उठाते और यदि इसमें किसी प्रकार की कोई आपत्ति है, तो उसमें सुधार की बात करते. पर यहां तो जनता के प्रतिनिधि ही जनता को उकसाने में लगे रहे. नतीजा सबके सामने है. व्हाटसएप और फेसबुक में लगे युवा सही और गलत का फर्क भी नहीं कर पाये और कूद गये मैदान में. सोशल मीडिया पर फैलायी गयी अफवाहें भी बंद के दौरान हिंसा का कारण बनीं. अत: युवाओं से आग्रह है कि व्हाट्सएप और फेसबुक से बाहर भी एक वास्तविक दुनिया है. उसे देखें समझें तब कोई प्रतिक्रिया दें.