ना करना मुझे खुद से दूर…मां!
भर नाखून भी बनी होती मैं तेरे जैसी,
माँ कोख पे तूने अगर न चलाई होती कैची,
तुम्हे माँ कहने वाला
मिल गया ही था तो
क्यों सजाया अपनी बगिया में
अधजन्मे कपास को,
माँ बनने का गर्व याद रहा
और तोड़ दिया क्यों इस आभास को,
गुरुर भी तू न कर पाई
अपनी पायल काजल और बिंदिया का,
वंश मिला कलेजे से लगा लिया
वंशिनी को भस्म कर दिया
यह कहके कि यह बोझ है दुनिया का,
तू चाहती तो मैं तेरे आंगन में
दीये सजाती दीवाली में,
पर अब किसी को मैं निर्जीव मिलूंगी
शायद कचरे के डब्बे में या नाली में,
बहा ले जाएगा सबको
वक़्त का रेला तुम देखना माँ
जो तुम्हे बेबस समझते है
तू तो मेरी अपनी थी न माँ
फिर मुझे क्या लेना
जो मुझे सौतेला समझते है।।