फादर्स डे स्पेशल : बाबा का सहारा | शैलेन्द्र ‘उज्जैनी’
न दौलत चाहिए ,न शोहरत चाहिए….
जिनको पकड़कर चलना सीखा था…..
फिर उन उँगलियों का सहारा चाहिए…
अकेला हो गया बाबा दुनिया के झमेले में…
खो सा गया हूँ रंजो ग़म के मेले में….
रोता बहुत हूँ बाबा अब तो अकेले में…
भँवर मे हूँ फिर वही किनारा चाहिए…
जिनको पकड़कर चलना सीखा था…..
फिर उन उँगलियों का सहारा चाहिए…
रिश्ते तो मिले लेकिन सबकी कीमत थी..
मुँह देखे के नाते दिखावे की उल्फ़त थी..
जाता किधर हर ओर झूठों कि हुकूमत थी..
मोहब्बत के नाम पर बस तिज़ारत थी….
पतझड़ है बाबा फिर वही बहारा चाहिए..
जिनको पकड़कर चलना सीखा था…..
फिर उन उँगलियों का सहारा चाहिए…
पिता थे ज़िदगी में मेरे छांव बरगद की…
वही थे जीवन में तिजोरी मेरी चाहत की…
बेरंग दुनिया में बनके रहे वो तस्वीर रंगत की..
काली रात है वही रोशन सितारा चाहिए..
न दौलत चाहिए ,न शोहरत चाहिए….
जिनको पकड़कर चलना सीखा था…..
फिर उन उँगलियों का सहारा चाहिए…
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