क्या है चैलेंज ट्रायल जिसके इस्तेमाल से कोरोना की दवा बनाएगा अमेरिका

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कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखकर अमेरिकी शोधकर्ताओं ने स्वस्थ व्यक्तियों को संक्रमित कर कुछ माह में टीका तैयार करने की विवादित पद्धति चैलेंज ट्रॉयल के इस्तेमाल का फैसला किया है.

इस पद्धति में स्वस्थ व्यक्तियों को कोरोना के संपर्क में लाया जाएगा, ताकि तेजी से पता चल सके कि संक्रमण के शुरुआती दौर में वायरस कहां और कैसे हमला करता है और ठीक उसी वक्त दी गई वैक्सीन यानी टीका क्या असर दिखाता है.

ऐसा ट्रायल किसी उभरती बीमारी की बजाय कई साल जानलेवा हमला करने वाले वायरस पर किया जाता है, जिसकी ज्यादा जानकारी वैज्ञानिकों के पास हो और इलाज में भी कुछ कामयाबी मिल चुकी हो. अमेरिकी सांसदों ने कोविड-19 के लिए इस पद्धति के समर्थन में मुहिम छेड़ी थी और हजारों लोगों ने जिंदगी को खतरे के बावजूद इस परीक्षण के लिए हामी भी भर दी थी.

इसके बाद डब्ल्यूएचओ के समर्थन से आपात कार्यों के लिए बनी अमेरिकी फेडरल टॉस्क फोर्स ने 100 से ज्यादा युवकों के स्वास्थ्य परीक्षण के बाद दस वालंटियर को चुन लिया है. वैक्सीन के पारंपरिक परीक्षण में वालंटियर को प्रायोगिक या प्लेसबो (सांकेतिक दवा) वैक्सीन दी जाती है और शोधकर्ता देखते हैं कि कौन सा व्यक्ति संक्रमित होता है. इसमें लंबा वक्त और हजारों वालंटियर की जरूरत पड़ती है. शुरुआत में यह पता करना मुश्किल होता है कि वैक्सीन किसका बचाव करेगी, किसका नहीं.

किन बीमारियों में हुआ है इस्तेमाल

पिछले कुछ दशकों में मलेरिया, टायफाइड, कालरा, इनफ्लूएंजा समेत कई बीमारियों पर चैलेंज ट्रायल कर इलाज खोजा गया है. वैक्सीन को तेजी से मंजूरी मिलने में यह बेहद कारगर रही. वर्ष 2016 में जीका वायरस के हमले के बाद चैलेंज ट्रायल के जरिये टीका बनाने में सफलता मिली.

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