धरती के लिए नई मुसीबत, आर्कटिक के ऊपर ओज़ोन में हुआ छेद
दुनिया भर में लॉकडाउन के बीच वायु प्रदूषण का घटना, नदियों का साफ होना और अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन लेयर का दुरुस्त होना जैसी सूचनाएं शामिल थीं. लेकिन अब जानकारी मिली है कि उत्तरी ध्रुव पर आर्कटिक के ऊपर ओजोन लेयर में काफी बड़ा छेद हो गया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह छेद करीब 10 लाख वर्ग किलोमीटर का है. फिर भी यह अंटार्कटिका के छेद से बहुत छोटा है जो तीन-चार महीने में दो से ढाई करोड़ वर्ग किमी तक फैल जाता है.
आर्कटिक के ऊपर बने इस नए छेद का कारण भी वातावरण में हो रहे बदलाव ही हैं. इस समय उत्तरी ध्रुव पर अप्रत्याशित तौर पर अभी तक मौसम पिछले वर्षों के मुकाबले ज्यादा ठंडा है. दोनों ही ध्रुवों पर सर्दी के मौसम में ओजोन कम हो जाती है. ऐसा आर्कटिक पर अंटार्कटिका के मुकाबले काफी कम होता है. यह छेद ध्रुवों पर बहुत कम तापमान, सूर्य की रोशनी, बहुत बड़े हवा के भंवर और क्लोरोफ्लोरो कार्बन पदार्थों से बनता है.
आर्कटिक के ऊपर बने इस नए छेद का कारण भी वातावरण में हो रहे बदलाव ही हैं. इस समय उत्तरी ध्रुव पर अप्रत्याशित तौर पर अभी तक मौसम पिछले वर्षों के मुकाबले ज्यादा ठंडा है. दोनों ही ध्रुवों पर सर्दी के मौसम में ओजोन कम हो जाती है. ऐसा आर्कटिक पर अंटार्कटिका के मुकाबले काफी कम होता है. यह छेद ध्रुवों पर बहुत कम तापमान, सूर्य की रोशनी, बहुत बड़े हवा के भंवर और क्लोरोफ्लोरो कार्बन पदार्थों से बनता है.
उत्तरी ध्रुव पर अंटार्कटिका जैसी भयंकर ठंड नहीं होती है. लेकिन इस साल वहां बहुत ज्यादा ठंड पड़ी और स्ट्रटोस्फियर पर एक पोलर वोर्टेक्स बन गया. ठंड का मौसम जाते ही जब वहां सूर्य की रोशनी पहुंची तब ओजोन खत्म होना शुरू हो गई. फिर भी इसकी मात्रा दक्षिण ध्रुव की तुलना में काफी कम रही.
वैज्ञानिकों ने कॉपरनिकस सेंटियल-5P सैटेलाइट के आंकड़ों के आधार पर पाया कि आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर ओजोन की मात्रा में बहुत ज्यादा गिरावट हुई है. इससे वहां ओजोन परत में काफी बड़ा छेद हो गया है. पृथ्वी के वायुमंडल की स्ट्रैटोस्फेयर परत के निचले हिस्से में बड़ी मात्रा में ओजोन पाई जाती है. इसी को ओजोन लेयर कहते हैं.
यह परत पृथ्वी की सतह पर सूर्य से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावॉयलेट किरणों को रोक देती है, जिससे पृथ्वी पर जीवन को लेकर कई समस्याएं हो सकती हैं. जब भी ओजोन परत में छेद की बात होती है तो उसका मतलब अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद से होता है. यहां ओजोन की मात्रा प्रदूषण के कारण बहुत ही कम हो गई है, जिससे अल्ट्रावॉयलेट किरणें सीधे धरती की सतह पर आती हैं.
पहले भी वैज्ञानिकों को इस तरह के बहुत ही छोटे छेद आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर दिखते रहे हैं. इस साल यह पहले की तुलना में बहुत बड़ा दिख रहा है. वहीं, हाल में पिछले एक दो सालों से अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छेद में काफी सुधार हुआ है. इस साल कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में चल रहे लॉकडाउन के कारण ओजोन लेयर में बने इस होल की पूरी कार्यप्रणाली ही गड़बड़ा गई, जिससे भी काफी फर्क पड़ा.
क्या होगा नुकसान
ओजोन लेयर में छेद से आर्कटिक क्षेत्र में गर्मी बढेगी और यहां मौजूद बर्फ पिघलने की रफ्तार में इजाफा होगा. वहीं, यूवी रेज सीधे धरती की सतह पर पहुंचने से लोगों में स्किन कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के मामले बढ़ सकते हैं. स्किन कैंसर का एक और घातक स्वरूप मेलेनोमा के मामलों में वृद्धि हो सकती है.
UVB विकिरण में 10 फीसदी वृद्धि पुरुषों में मेलानोमा को 19 फीसदी और महिलाओं में 16 फीसदी बढ़ाती है. ओजोन में कमी और UVB स्तर में वृद्धि के साथ मेलानोमा में 56 फीसदी और गैर मेलानोमा स्किन कैंसर में 46 फीसदी की वृद्धि हुई. लोगों में आंख के मोतियाबिंद की शिकायत बढ़ सकती है. यूवी विकिरण में वृद्धि फसलों को भी प्रभावित कर सकती है.