इंसानों को भी ट्रैक करने में मददगार है जिओ फेंसिंग, जानिए कैसे काम करता है
जियो फेंसिंग फीचर को किसी भी मोबाइल एप के साथ इंट्रीगेट किया जा सकता है. फ़र्ज़ कीजिये आप जैसे ही घर में आते है वहां की लाइटें और दूसरी चीजे जल उठती हैं और घर से बाहर जाते ही सब बंद हो जाता है. ये ‘जिओ फेंसिंग’ की मदद से सेट किया जा सकता है.
क्या है जियो फेंसिंग
जिओ फेंसिंग एक लोकेशन बेस सर्विस है जिसकी मदद से कई दूसरे सॉफ्टवेयर और एप्स जीपीएस का प्रयोग करते है, इसके अलावा वाई-फाई, सेलुलर डेटा और पहले से तय किए गए कई प्रोग्राम में भी इसका प्रयोग होता है. अगर आपने कभी ध्यान दिया हो तो क्यूआर कोड स्कैन करते समय आपकी लोकेशन के साथ कई दूसरी जानकारी फोन पर हमें मिल जाती है ये सब जियो फेंसिंग की मदद से ही होता है.
ये निर्भर करता है जिओ फेंस किस सर्विस के लिए सेट किया गया है जैसे नोटिफिकेशन का एक उदाहरण लें अगर आप लोकेशन बेस खबरें अपने फोन में सेट करते हैं तो ‘जिओ फेंसिंग’ की मदद से आपका फोन उसी लोकेशन से जुड़ी खबरें फोन में देता रहेगा.
अगर आप किसी गाड़ी की लोकेशन या फिर किसी व्यक्ति को ट्रैक करना चाहते हैं तो जियो फेंसिंग की मदद से उसकी सटीक लोकेशन ट्रैक कर सकते हैं.
कैसे ट्रैक होती है लोकेशन
जिओ फेंसिंग’ के लिए सबसे पहले कोई भी डेवलपर जीपीएस और RFID इनेबल साफ्टवेयर की मदद से एक तरह की वर्चुअल बाउंड्री बनाता है, जैसे मान लीजिए गूगल मैप में जाकर 100 फीट के दायरे की एक बाउंड्री बना दी गई इसके बाद एपीआई की मदद से मोबाइल एप बनाई जाती है जिसे उसी निधार्रित दायरे के अंदर सेट किया जाता है यानी वो डिवाइस सिर्फ उसी 100 फीट दायरे में ही काम करेगी या फिर उससे बाहर जाने पर एलर्ट या नोटिफिकेशन देने लगेगी.
आइसोलेशन में रखे मरीजो को ट्रैक करने के लिए हो रहा इस्तेमाल
भारत के लगभग 8 राज्यो में ‘जिओ फेंसिंग’ का यूज़ कोरोना वायरस से ग्रसित होने के संदिग्ध व्यक्तियों पर किया जा रहा है. जैसे ही वो तय किए गए दायरे से बाहर की ओर निकलते हैं इसका एलर्ट वहां पर मौजूद सभी अधिकारियों और स्वास्थ्यकर्मियों के पास चला जाता है.
किसी भी व्यक्ति पर नजर रखने के लिए मोबाइल के तीन टॉवर के डेटा का यूज़ किया जा रहा है. इससे 100 मीटर के दायरे में आसानी से नज़र रख सकते हैं. अगर कोई व्यक्ति 100 मीटर के दायरे से बाहर जाता है तो उसे ‘जिओ फेंसिंग’ का उल्लंघन माना जाता है.