यहाँ पहाड़ से लटके घरों में रहते हैं लोग, ऐसे बनाते हैं घर
मस्कट के बलुआ तटों से 195 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में ओमान का मैदानी इलाका चूना पत्थरों के एक ऊंचे पहाड़ों में तब्दील हो चुका है. 2980 मीटर ऊंचा यह पहाड़ हरे पहाड़ या ग्रीन माउंटेन के रूप में भी जाना जाता है. घुमावदार घाटियों और गहरे खड्डों से भरपूर यह देश का एक सुदूरवर्ती कोना है. सड़क ख़त्म होते ही आगे बढ़ने का तरीका या तो पैदल या खच्चर से या फिर ऑल टेरेन व्हिकल से रह जाता है.
20 किलोमीटर का टेढ़ा-मेढ़ा लेकिन खड़ी ढलानों वाला रास्ता चढ़ने के बाद एक खड्ड के उस पार पहाड़ी की कगार पर लगभग हवा में लटका हुआ घरों का एक छोटा सा समूह है. यह अल सोगारा है. एक ऐसा दूरदराज़ वाला गांव जो पहाड़ियों को काटकर बनाया गया है और जहां लोग पिछले 500 वर्षों से अधिक समय से रह रहे हैं.
हालांकि, ग्रीन माउंटेन को ओमान के एक अद्भुत परिदृश्य का दर्जा दिया जाता है लेकिन कुछ ही यात्री अल सोगारा पहुंच पाते हैं. इस क्षेत्र में इस तरह के कई सारे गांव हैं लेकिन अल सोगारा ही ऐसा है जो अब भी बसा हुआ है. मुख्य पहाड़ी शहर सेह क़ताना से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर बसा अल सोगारा इस क्षेत्र का सबसे एकाकी गांव है और पूरे ओमान में सबसे सुदूरवर्ती बसे हुए प्रदेशों में से है.
न बिजली ना फोन
14 साल पहले तक अल सोगारा में बिजली या फोन नहीं होते थे और इसकी सबसे पास की सड़क 15 किलोमीटर दूर थी. सामान की आवाजाही पास के निज़वा और बिरकत अल मूज़ शहरों से खच्चरों द्वारा की जाती थी. लेकिन 2005 में, कुछ जुगाड़ू गांव वालों ने पत्थरीली सड़क तक खड्ड के ऊपर दो गड़ारियां लगाकर घाटी से सड़क तक की केबल सवारी तैयार कर ली जिससे सामान ढोया जा सके.
अल सोगारा में 45 से अधिक की आबादी शायद ही कभी रही हो. स्कूल न होने के कारण पुरानी पीढ़ियों ने घर पर ही लिखना-पढ़ना सीखा. लेकिन, 1970 के दशक से बच्चे 14 किलोमीटर दूर स्थित शहर सैक़ के स्कूल में जाने लगे. वहां जाने के लिए उन्हें गांव की संकरी सीढ़ी से उतरकर पहाड़ के दूसरी ओर तक पैदल जाना होता था जहां से एक कार उन्हें स्कूल तक छोड़ती थी.
ये सभी लोग जॉर्डन से 1000 वर्ष पहले यहां आये और समूचे ओमान में बस गए. ये सभी गांव वाले अल सोगारा में 500 साल से अधिक समय से पहले आए अपने एक पूर्वज की देन हैं. इतनी पीढ़ियों के बाद भी अलशरीकी समुदाय में प्राचीन पद्धति से घर बनाने की कला बरकरार है जिसमें या तो चट्टान और चिकनी मिट्टी इस्तेमाल होती थी या फिर चट्टान को काटकर ही बसेरे बनाए जाते थे. अंदर से ये घर गुफाओं की तरह हैं. यदि दीवारें न हों तो पहाड़ में एक गुफा ही दिखेगी.
नियमित होती है बर्फ़बारी
समुद्र तट से 2700 मीटर ऊपर बसे अल सोगारा में नियमित रूप से बर्फबारी होती है. यहां बहुत भीषण ठंड पड़ती है. लोग चूना पत्थरों और चिकनी मिट्टी से अपने घर बनाते हैं जिससे ग्रीन माउंटेन पर पड़ने वाली ठंडक से बचा जा सके और गर्मियों में भी राहत रहे.
लोग यहाँ पहाड़ी पर टंगे घर बनाते हैं जिसमें पत्थरों को पीसकर पानी में मिलाया जाता है और चिकनी मिट्टी की दीवारें बनाई जाती हैं या फिर चूना पत्थरों को काटकर चट्टानों में ही कमरे तैयार किए जाते हैं. गांव वाले न केवल पहाड़ काटकर अपना घर बनाते हैं बल्कि इन्हीं घरों में अपने पशुओं के झुडों को भी रखते हैं.
कई सदियों से अल सोगारा के परिवार इन गुफाओं के मुहाने पर बाड़ लगाते हैं जिससे जंगली जानवरों से अपने पशुओं की सुरक्षा की जा सके. जिस व्यक्ति के पास जितनी ज़्यादा बकरियां, भेड़ें और खच्चर हों, वह उतना ही सम्पन्न माना जाता है. पशुपालन के साथ वे खेती भी करते हैं और अनार, खजूर, नाशपाती, आड़ू, अखरोट, संतरे, अंजीर, लहसुन, प्याज और अन्य सब्जियां उगाते हैं. अल सोगारा जनजाति आवभगत का एक परम्परागत तरीका अपनाती है जिसमें गांव वाले घर आए मेहमानों को पूरे तीन दिन तक खिलाने-पिलाने के बाद ही घर में रूकने का कारण पूछते हैं.
सिंचाई का अद्भुत तरीका
ओमान के दूरदराज़ के क्षेत्रों में ज़िन्दगी चलाए रखने के लिए प्राचीन बसेरों ने सिंचाई की एक ऐसी कुशल प्रणाली विकसित की जिसे ‘अफ्लाज’ कहा जाता है. इसमें पानी को गुरूत्वाकर्षण शक्ति की मदद से भूमिगत स्रोतों से उठाकर सिंचाई की जाती है. 500 ईस्वी से प्रयोग में लाई जाने वाली इन नहरों की कभी इतनी अहमियत थी कि इनकी रक्षा के लिए जगह-जगह बुर्ज बनाए गए. अल सोगारा सहित आज पूरे ओमान में इस तरह की लगभग 3000 नहरें हैं जहां भूमिकत सोते से ‘अफ्लाज’ के ज़रिए पानी उपलब्ध कराया जाता है.
स्त्रोत: बीबीसी