इस जगह है ऐसे बाथरूम जो बनते हैं लोगों के मेल जोल और दोस्ती का जरिया
उगते सूरज के देश जापान में सदियों से एक परंपरा चली आ रही है. ये परंपरा है सार्वजनिक हम्माम यानी बाथरूम में नहाने की. इन हम्मामों को जापान में सेंटो कहा जाता है. 19वीं सदी तक ये हम्माम हर शहर में बड़ी तादाद में मिलते थे. नहाने के ये ठिकाने जापान की संस्कृति का अहम हिस्सा थे.
एक दौर ऐसा था कि ये जापान में वो ठिकाने हुआ करते थे, जहां जाकर पूरा परिवार नहा सकता था. लोग रोज़ इसके लिए सेंटो जाया करते थे. इन हम्माम घरों की दीवारों पर ख़ूबसूरत और आंखों को सुकून देने वाली पेंटिंग की जाती थी. लेकिन पिछली आधी सदी से जापान में सेंटो की तादाद लगातार घट रही है. एक वक़्त में जापान में 18 हज़ार से ज़्यादा सार्वजनिक स्नानघर हुआ करते थे. लेकिन अब इनकी संख्या घटकर महज़ तीन हज़ार रह गई है.
जब इनकी संख्या ज़्यादा थी, तो इनकी दीवारों पर चित्र उकेरने वालों की तादाद भी ख़ूब थी. हम्माम घटे, तो इन्हें सजाने वाले कलाकार भी कम होते गए. और आज हालात यह है कि इन हम्माम घरों में पेंटिंग करने वाले कुल तीन कलाकार ही बचे हैं. इन्हें सेंटो मास्टर कहा जाता है. ये हम्माम हफ़्ते में केवल एक बार बंद हो सकते हैं. इसलिए इन चित्रकारों को एक ही दिन के अन्दर अपना पूरा काम खतम करने की चुनौती होती है.
किसी भी सेंटो को रंगने के लिए सेनटो मास्टर के पास केवल 11 घंटे होते हैं. यहां नहाने आने वाले, दुनियावी तनाव दूर करने के लिए आते हैं. ऐसे में उनका मक़सद होता है कि वो दीवारों पर ऐसी चित्रकारी करें कि वो स्नान करने वालों को सुकून दें.
जापान में इन सार्वजनिक हम्मामों या सेंटो की शुरुआत बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ 700 ईस्वी में हुई थी. क्योंकि ये माना जाता है कि बुद्ध की पूजा के लिए शरीर का साफ-सुथरा होना बहुत ज़रूरी है. ये सार्वजनिक स्नानघर आम जनता के लिए खुले थे. कोई भी पैसे देकर यहां नहा सकता था. 1200 ईस्वी में इन हम्मामों को सेंटो यानी सिक्के से स्नान करने का ठिकाना कहा जाने लगा. इनकी दीवारों पर क़ुदरती मंज़र उकेरे जाते थे, ताकि नहाने आए शख़्स को सुकून मिल सके. बाद में सेंटो में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग नहाने के ठिकाने बनाए जाने लगे. इसके अलावा लोगों के पूरी तरह से कपड़े उतारकर नहाने की व्यवस्था भी होने लगी. ऊंची दीवारों और पेंटिंग के दरमियान स्नान एक अलग ही तजुर्बा था. लगभग हर सेंटो की दीवार पर आप को जापान के सबसे चर्चित पहाड़ माउंट फुजी झांकता नज़र आएगा.
मेल जोल का जरिया बने बाथरूम
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य चला. इसका फ़ायदा सेंटो की संस्कृति को भी हुआ. क्योंकि जापान के घरों में अपने बाथरूम नहीं हुआ करते थे. ऐसे में ये सार्वजनिक स्नान घर नहाने-धोने के अलावा मेल-जोल का भी ज़रिया बनते थे. दोस्तों, पड़ोसियों से गप-शप और दिमाग़ी थकान उतारने के लिए बड़ी तादादा में लोग हम्माम जाया करते थे. सेंटो के बारे में कहा जाता है कि ये नैकेड फ्रेंडशिप के ठिकाने हैं.
बाद में जापान की अर्थव्यवस्था का विकास हुआ, तो लोगों के घरों में अपने बाथरूम बनने लगे. नतीजा ये हुआ कि सार्वजनिक हम्मामों का चलन घटने लगा. आज पूरे जापान में केवल 2600 सेंटो बचे हुए हैं.
जापान में कमोबेश हर सेंटो में यहां के मशहूर माउंट फुजी की तस्वीर मिल जाएगी. जापानी इसे बहुत पवित्र मानते हैं. कहा जाता है कि 3776 मीटर ऊंचे इस पर्वत की तस्वीर पहली बार साल 1912 में किसी सेंटो में बनाई गई थी. तब से माउंट फुजी की बर्फ़ से ढकी चोटियां, कमोबेश हर सेंटो की दीवार पर दिखाई देती है.