लद्दाख की संजीवनी बूटी ‘सोलो’ की खासियत यहाँ जानिये
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्टिकल 370 हटने के बाद जब 8 अगस्त को रात 8 बजे राष्ट्र को संबोधित किया तो पूरी जनता टकटकी लगाए उन्हें सुन रही थी. नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में जम्मू-कश्मीर के बारे में लिए गए सरकार के ताज़ा फ़ैसले का ज़िक्र किया और यह भी बताया कि इस फ़ैसले से किस तरह जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को फ़ायदा होगा. लद्दाख के बारे में बात करते हुए प्रधानमंत्री ने एक ख़ास पौधे का ज़िक्र किया, जिसे उन्होंने ‘संजीवनी बूटी’ बताया.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ”लद्दाख में सोलो नाम का एक पौधा पाया जाता है. यह पौधा हाई ऐल्टिट्यूड पर रहने वालों के लिए, बर्फीली जगहों पर तैनात सुरक्षाबलों के लिए संजीवनी का काम करता है. कम ऑक्सिजन वाली जगह में इम्यून सिस्टम को संभाले रखने में इसकी भूमिका है.’ सोचिए, ऐसी चीज़ दुनिया भर में बिकनी चाहिए या नहीं? ऐसे अनगिनत पौधे, हर्बल प्रॉडक्ट जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बिखरे हैं. उनकी पहचान होगी, बिक्री होगी तो वहां के किसानों को लाभ होगा. इसलिए मैं देश के उद्यमियों, एक्सपोर्ट या फूडप्रोसेसिंग से जुड़े लोगों से आग्रह करूंगा कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के स्थानीय प्रॉडक्ट्स को दुनिया भर में पहुंचाने के लिए आगे आएं.”
क्या है सोलो पौधा
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में जब सोलो नामक पौधे का ज़िक्र किया तो इसे लेकर आम लोगों में उत्सुकता बढ़ गई. सोलो नाम की यह औषधीय बूटी लद्दाख में पाई जाती है. इसके अलावा यह साइबेरिया की पहाड़ियों में भी मिलती है. इस बूटी में बहुत अधिक औषधीय गुण हैं. मुख्य तौर पर सोलो की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं. जिनका नाम सोलो कारपो (सफेद), सोलो मारपो (लाल) और सोलो सेरपो (पीला) है. भारत में लद्दाख ही एकमात्र जगह है जहां सोलो उगाया जाता है. लद्दाख के स्थानी वैद्य और आयुर्वेदिक डॉक्टर भी इस पौधे से दवाइयां बनाते हैं. वो मुख्यतः सोलो कारपो (सफ़ेद) का प्रयोग करते हैं.
इस बूटी की मदद से भूख न लगने की समस्या को दूर किया जाता है. साथ ही यह बूटी याददाश्त को भी बेहतर करती है. इतना ही नहीं सोलो का इस्तेमाल डिप्रेशन की दवा के तौर पर भी किया जाता है. सोलो के पौधे 15 से 18 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर ही उगते हैं. लद्दाख में इसके पौधे खारदुंग-ला, चांगला और पेज़िला इलाके में मिलते हैं.
लद्दाख के स्थानीय लोग इस पौधे से एक व्यंजन भी बनाते हैं जिसे वो ‘तंगथुर’ कहते हैं. यह व्यंजन स्थानीय लोगों के बीच खासा प्रचलित है और इसका सेवन स्वास्थ्य लाभ के लिहाज़ से भी किया जाता है.