जल्द ही बाजार में मिलने लगेंगे लैब में बने मांस, हैमबर्गर बनाने के लिए हो रहा इस्तेमाल
लैब में बनाया जाने वाला मांस पहली बार आज से छह साल पहले दुनिया के सामने 280,000 डॉलर (आज के करीब 1.92 करोड़ रूपये) की कीमत वाले हैमबर्गर के रूप में पेश किया गया था. यूरोपियन स्टार्ट-अप्स का कहना है कि यह दो साल के भीतर 10 डॉलर मूल्य की एक पैटी के रूप में सुपरमार्केट में आ सकता है. जलवायु परिवर्तन, पशु कल्याण और अपने स्वयं के स्वास्थ्य के बारे में चिंतित उपभोक्ताओं की स्वच्छ मांस में रुचि बढ़ रही है. यही वजह है कि इस पर काम करने वाले स्टार्ट-अप्स की संख्या चार से शुरू होकर केवल दो सालों में दो दर्जन से अधिक हो गई.
पौधों पर आधारित मांस के विकल्प की मांग भी बढ़ रही है. मई में सार्वजनिक तौर पर पेश किए जाने के बाद से बियॉन्ड मीट के शेयरों की कीमत में तीन गुना से अधिक की वृद्धि हुई है. बियॉन्ड मीट और इम्पॉसिबल फूड्स दोनों अमेरिका में खुदरा विक्रेताओं और फास्ट फूड चेनों को सौ फीसदी पौधों से बनने वाला मांस बेचते हैं. खाने की प्लेटों पर पहुंचवे वाली अगली पेशकश पशुओं की कोशिकाओं से बनने वाला मांस हो सकता है. इसके उत्पादक प्राधिकरण की मंजूरी मिलने की ताक में हैं ताकि वे प्रौद्योगिकी में सुधार कर इसकी लागत को और कम कर सकें.
2013 में डच स्टार्ट-अप मोसा मीट के सह-संस्थापक मार्क पोस्ट ने 250,000 यूरो (280,400 डॉलर) की लागत से पहला “कलचर्ड” बीफ हैमबर्गर बनाया था. पैसे की व्यवस्था गूगल के सह-संस्थापक सर्गेई ब्रिन द्वारा की गई थी. लेकिन तब से उत्पादन लागत में गिरावट आई है. 2013 में बर्गर महंगा था क्योंकि तब इसकी खोज शुरूआती दौर में थी और काफी कम उत्पादन था. एक बार जैसे ही उत्पादन बढ़ता है, उम्मीद है कि एक हैमबर्गर की कीमत 9 यूरो के आसपास आ जाएगी. यह एक पारंपरिक हैमबर्गर से भी सस्ता हो सकता है. एक किलोग्राम ‘कल्चर्ड’ मांस के उत्पादन की औसत लागत अब लगभग 100 यूरो है.
बायोटेक फूड्स, मोसा मीट और लंदन स्थित कंपनी हायर स्टेक मांस के उत्पादन के लिए यूरोपीय संघ की मंजूरी लेने का आवेदन करने वाले हैं. वे अभी भी सीरम में सुधार के लिए और काम कर रहे हैं. कल्चर्ड मांस बनाने के लिए, एक जानवर की मांसपेशियों से निकाली गई स्टेम कोशिकाओं को एक माध्यम में रखा जाता है जो बाद में एक बायोरिएक्टर में डाल दिया जाता है. इससे नई मांसपेशियों का विकास होता है. इस नई तकनीक के समर्थकों का कहना है कि मांस की मांग को पूरा करने का यह एकमात्र पर्यावरण-सम्मत तरीका है. दरअसल संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन को लगता है कि 2000 और 2050 के बीच मांस की मांग दोगुनी हो जाएगी.
हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि लैब में विकसित मांस उत्पादन वास्तव में पारंपरिक मांस उत्पादन की तुलना में ऊर्जा और पोषक तत्वों के लिहाज से ज्यादा प्रभावी होगा. कुछ अध्ययनों ने सुझाव दिया है कि परम्परागत पशुधन उत्पादन की तुलना में कल्चर्ड मांस को ‘फीड’ स्रोत की कम, लेकिन ऊर्जा की अधिक आवश्यकता हो सकती है. यदि ऐसा है, तो जलवायु पर उनका प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि यह ऊर्जा कहां से आती है.
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