क्यों कम्पनी नहीं चाहती अल्जाइमर की नयी दवा लोगों तक पहुंचे

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जब पिछले साल जनवरी में जब दवाइयां बनाने वाली अमरीकी कंपनी फाइज़र ने अल्ज़ाइमर और पर्किंसन जैसी बीमारियों के लिए नई दवा न बनाने का ऐलान किया तो मरीज़ों और शोधकर्ताओं के बीच एक निराशा छा गई थी.

इससे पहले यह कंपनी अल्ज़ाइमर के लिए वैकल्पिक दवा तलाशने में लाखों डॉलर ख़र्च कर चुकी थी. लेकिन फिर उन्होंने तय किया कि ये पैसा कहीं और दूसरे काम में ख़र्च किया जाएगा. फाइज़र ने इसे सही ठहराते हुए कहा था कि हमें इस ख़र्च को वहां लगाना चाहिए जहां हमारे वैज्ञानिकों की पकड़ ज़्यादा मज़बूत है.

लेकिन अमरीकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट की एक ख़बर के अनुसार ये नतीजे अल्ज़ाइमर के ख़िलाफ़ लड़ाई में बेहद अहम थे. इसके बावजूद कंपनी ने इस शोध के परिणामों को छिपाकर रखा.

यह अध्ययन सैकड़ों बीमा दावों के आधार पर की गई थी, जिससे पता चला है इनफ्लेशन (सूजन) को कम करने वाली फाइज़र की एक दवा- ‘एन्ब्रेल’ जो रयूमेटॉइड अर्थराइटिस के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती है, वह अल्ज़ाइमर के ख़तरे को 64 फीसदी तक कम कर सकती थी.

2018 में फ़ाइज़र की एक अंदरूनी समिति के एक प्रेजेंटेशन में बताया गया था कि “एन्ब्रेल अल्ज़ाइमर को रोक सकती थी, उसके इलाज और उसके बढ़ने की गति को कम कर सकती थी.” कंपनी ने वाशिंगटन पोस्ट से बातचीत में ये नतीजे सार्वजनिक न किए जाने की पुष्टि की. कंपनी ने कहा कि तीन साल में अंदरूनी समीक्षा के दौरान ये पाया गया कि एन्ब्रेल अल्ज़ाइमर के इलाज में कारगर नहीं है क्योंकि यह दवा सीधे ब्रेन टिशू तक नहीं पहुंचती. फाइज़र का कहना था कि अल्ज़ाइमर के ख़िलाफ़ इस दवा के क्लिनिकल ट्रायल की कामयाबी के आसार कम थे.

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नतीजे सार्वजनिक ना करने के पीछे का कारण

फाइज़र का कहना है कि उन्होंने इसलिए अपने शोध के नतीजे सार्वजनिक नहीं किए क्योंकि यह अल्ज़ाइमर की दूसरी दवा खोजने के लिए काम कर रहे दूसरे वैज्ञानिकों को भटका सकता था.

लेकिन ज्यादातर वैज्ञानिकों का मानना है कि वैज्ञानिकों के लिए ये जानकारी काफ़ी उपयोगी होती. जानकारी चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक, वैज्ञानिकों को बेहतर फैसला लेने में मदद करती हैं.

फ़ाइज़र निश्चित रूप से यह जानती है कि कई बार एक बीमारी के लिए बनाई गई दवा दूसरी बीमारी के इलाज में ज़्यादा कारगर निकलती है. वायग्रा के संबंध में भी यही हुआ है.

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