3.5 लाख रुपये से शुरू हुई कम्पनी कैसे बन गयी हुवावे जैसा बड़ा ब्रांड, जानिये पूरा सफ़र
अमेरिका ने चीनी कंपनी हुवावे को ब्लैक लिस्टेड कर रखा है। अपने यहां 5जी नेटवर्क के लिए वह इसके उपकरणों का इस्तेमाल नहीं कर रहा है। इतना सब होने के बावजूद हुवावे टेलीकॉम उपकरण बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बनी हुई है। साथ ही स्मार्टफोन बनाने के मामले में सैमसंग के बाद दुनिया की दूसरी बड़ी कंपनी है। हुवावे को इस मुकाम पर पहुंचाने और मुश्किलों में भी सफलता दिलाने का श्रेय फाउंडर रेन झेंगफेई को है। पढ़िए, रेन ने कैसे यह कंपनी खड़ी की और इसे सफल बनाया
आर्मी में होने के बावजूद रेन को नहीं मिली थी मिलिट्री रैंक
चीन में कम्युनिस्ट सरकार 1949 में बनी। इससे पहले यहां केएमटी पार्टी की सरकार थी। रेन झेंगफेई के पिता केएमटी सरकार की हथियारों की फैक्ट्री में क्लर्क थे। इस वजह से जब आगे चलकर रेन ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ज्वॉइन की तो उन्हें कभी मिलिट्री रैंक नहीं दिया गया। वे चीनी सेना की आईटी रिसर्च यूनिट में काम करते थे। 1982 में चीन ने सेना से पांच लाख सैन्य और असैन्य कर्मचारियों की छंटनी की। इस वजह से रेन को सिर्फ 38 साल की उम्र में सेना से रिटायरमेंट लेना पड़ा।
सर्वर स्विच बनाने वाली कंपनी के तौर पर हुई थी शुरुआत
मजबूरी में आर्मी से रिटायर होने के बाद रेन शेनझेन शहर शिफ्ट हो गए। वहां उन्होंने कई इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों में काम किया। 1987 में रेन ने 21 हजार युआन (करीब 3.5 लाख रुपए) की पूंजी के साथ हुवावे टेक्नोलॉजीज नाम की कंपनी बनाई। यह कंपनी शुरुआत में कंप्यूटर इंडस्ट्री में काम आने वाली सर्वर स्विच बनाती थी। हुवावे के सर्वर स्विच बाजार मौजूद प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के प्रोडक्ट की तुलना में एक तिहाई कीमत के होते थे। इसलिए उनकी कंपनी की बिक्री तेजी से आगे बढ़ी।
चीन ने 90 के दशक में अपने यहां टेलीकम्युनिकेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर का फैसला किया। चीन इसके लिए विदेशी कंपनियों की मदद लेना चाह रहा था। तब रेन झेंगफेई कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव जियांग जेमिन से
मिले। यह काम अपनी कंपनी को देने की मांग रखी। रेन ने तर्क दिया कि टेलीकम्युनिकेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला है। यह काम स्थानीय कंपनी को ही मिलना चाहिए। जियांग इस तर्क से सहमत हो गए और यह काम रेन की कंपनी हुवावे को मिला।
1997 में शुरू किया विदेश में कारोबार, 14 साल में 170 देशों में फैला दिया
चीन में टेलीकम्युनिकेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम सफलता के साथ पूरा करने के बाद हुवावे को विदेश से उपकरणों के लिए कॉन्ट्रेक्ट मिलने लगे। कंपनी 1997 में हांगकांग में पहली बार विदेशी कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया। 2011 तक कंपनी का बिजनेस दुनिया के 170 देशों तक पहुंच गया। 2005 में पहली बार हुवावे का विदेश में होने वाला बिजनेस चीन में कंपनी के बिजनेस से ज्यादा हुआ। 2012 में एरिक्सन को पीछे छोड़ हुवावे टेलीकॉम उपकरण बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बनी। आज इसकी सालाना बिक्री करीब 7.62 लाख करोड़ रुपए है।
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