इस हरी सब्जी को ठीक से नहीं पकाया तो बन जायेगी जहरीली
कहते हैं हरी सब्जियां स्वाद और सेहत का खजाना होती हैं. उनसे बेहतर कोई खाना नहीं हो सकता है. लेकिन क्या आपने कभी किसी ऐसी हरी सब्जी के बारे में सुना है जिसे अगर पकाने में जरा सी भी लापरवाही की जाए तो वह जहरीली हो जाती है? दक्षिणी अमेरिका में पोकवीड नाम की हरी पत्तियां ऐसी ही एक सब्जी है, जिसे वहां के लोग सदियों से खाते आ रहे हैं. ग़लत ढंग से पकाए जाने पर ये ज़हरीली हो सकती हैं लेकिन स्थानीय लोग चूँकि अब प्राकृतिक खाने को तवज्जो देने लगे हैं तो खतरनाक होने के बावजूद लोग इन पत्तियों को वे अपने खाने में फिर से भरपूर इस्तेमाल करने लगे हैं.
समूचे अमरीका में प्रचुर मात्रा में उगने वाला यह जंगली हरा पौधा दक्षिणी न्यूयॉर्क राज्य से उत्तर पूर्वी मिसीसिपी तथा बाकी के दक्षिणी हिस्से में अप्पालेचियाई पहाड़ों के साथ-साथ उगता है. इन पत्तियों से बनने वाले हरे व्यंजन को पोक सैलेड के नाम से लोकप्रियता मिली है. लूज़ियाना के टोनी जे व्हाइट के 1969 के हिट गाने पोक सलाद ऐनी से इसकी वर्तनी यानी स्पेलिंग पोक सलाद बन गई.
बीच में कम हुई थी लोकप्रियता
दक्षिण में रहने वाले पुराने वाशिंदों से यदि आप पूछें तो बहुत सारे लोगों को पोक सैलेट खाने की याद अब भी है, या वो ऐसे किसी को जानते हैं जो इसे खाता था. लेकिन यदि युवा पीढ़ी की बात करें तो दर्जनों लोगों से पूछने के बाद भी 40 से कम उम्र का शायद ही कोई व्यक्ति मिलेगा जो इसका नाम भी जानता हो. अमरीकियों की प्लेट से यह क्यों गायब हो गया और अब यह भोजन में फिर से अपना स्थान कैसे बना रहा है यह समझने के लिए इस पौधे के इतिहास पर नज़र डालनी होगी.
अप्पालेचिया में पोकवीड कई पीढ़ियों तक लोगों का मुख्य भोजन रहा था. यह एक ऐसा पदार्थ था जो मुख्य रूप से गरीबों का खाना था. अब ऐसी बात नहीं रही. लोगों की आर्थिक स्थिति जैसे जैसे अच्छी होने लगी, जंगली पौधों को ढूंढकर उनका व्यंजन बनाने का प्रचलन कम होता चला गया.
दक्षिण पूर्वी अमरीका में रहने वाले लोगों के लिए पोक सैलेड बिलकुल भी अनजान चीज नहीं है और वे उसे पर्याप्त मात्रा में इसे अपने आस पास उगते हुए देखते भी हैं लेकिन इसके बारे में जानते नहीं हैं. यह बिलकुल वैसा ही हैं जैसे हमारे आस पास भारत में कई तरह के औषधीय गुण वाले पौधे और झाड़ियाँ उगी होती हैं लेकिन हमें उनके गुणों के बारे में पता ही नहीं होता. साल भर उगने वाला पोक सैलेड का पौधा 10 फीट ऊंचा हो सकता है और कहीं भी फल-फूल सकता है. एक बार पूर्णावस्था प्राप्त करने पर इसके पत्ते काफी निखरकर और बैंगनी रंग में दिखाई देते हैं जिन पर गहरे बैंगनी या काले फल लगे हो सकते हैं. प्रकृति से चुने जाने वाले अन्य खाद्य पदार्थों की तरह पोकवीड के साथ भी एक समस्या है : यदि इसे ढंग से न तैयार किया जाए तो यह ज़हरीला हो सकता है.
वर्षों पहले अप्पालेचिया में कुदरत पर आश्रित रहना बहुत अहम था. बहुत सारे बुजुर्ग अब भी यह जानते हैं कि आप कुदरत से लेकर क्या खा सकते हैं और क्या नहीं. लेकिन बड़े पैमाने पर होने वाली कृषि और उपलब्ध भोजन के चलते यह कला अब धीरे धीरे कहीं खोती चली जा रही है.
असावधानी से होने वाले दुष्परिणाम
पोक पौधे के फलों को स्याही से लेकर लिपिस्टिक तक लगभग सभी चीजों के लिए प्रयोग किया जाता रहा है लेकिन इन्हें कभी खाना नहीं है- न तो जड़ों को, न तने को, न बीज को और न ही कच्ची पत्तियों को. हालांकि, आधुनिक युग में पोक सैलेट खाने से किसी की मृत्यु हुई हो, ऐसा मामला तो सामने नहीं आया है लेकिन इस पौधे के विभिन्न हिस्से ज़हरीले होते हैं और अक्सर इनके फल खाने से बच्चों को बीमार पड़ते देखा गया है. जंगली अंगूर की तरह दिखने वाले इन फलों को खाने से भीषण पेट दर्द, बढ़ी हुई हृदयगति, उल्टी, दस्त तथा सांस लेने में दिक्कत भी हो सकती है.
जैसे-जैसे पोकवीड बड़ा होता है उसके ज़हर का असर भी बढ़ता है. जड़ों को तो खासतौर से कभी भी नहीं खाना चाहिए. पौधे की पत्तियां सबसे कम ज़हरीली होती हैं. उसके बाद तने और फलों की बारी आती है.
इसीलिए बसंत ऋतु में जब पौधा छोटा होता है, तब उगने वाली उसकी पत्तियों को ही प्रयोग में लाना चाहिए और वह भी अच्छी तरह पकाकर. यहां के स्थानीय अमरीकियों, अफ्रीकी ग़ुलामों और अन्य लोगों ने काफी समय तक इसको पकाने की कला को परिष्कृत किया. तब जाकर इसकी तकनीक समझ आई. सबसे अच्छा तो ये होगा कि पहले एक-दो बार आप किसी ऐसे के साथ पोकवीड तोड़ने जाएं जो इसके बारे में जानता हो; अन्यथा आप इसे कुछ और ही समझ बैठेंगे. या फिर ऐसा कर सकते हैं कि अपने बैंगनी तने और फलों से अलग से दिखने वाले पूर्ण विकसित पौधे को पहचान कर आप उस जगह को याद कर लें और फिर बसंत ऋतु में वहां तक जाएं जब ये पौधे छोटे और खाने योग्य होते हैं.
पोकवीड बनाने की विधि
बादाम के आकार की चौड़ी पत्तियों को तब तोड़ा जाना चाहिए जब पौधा छोटा और मुलायम हो और इसकी ऊंचाई एक से दो फीट हो. इस समय इसका तना, डंठल तथा पत्तियां कुछ भी बैंगनी नहीं होता. अब इसे पकाने की बारी. सबसे पहले पत्तियों को अच्छी तरह धोने के बाद उबाला जाता है, जिससे इसका जहरीलापन कुछ कम हो जाए. उबालते समय पत्तियां पूरी तरह पानी में डूबी हुई होनी चाहिए. इसके बाद इसे छानकर किसी कल्छुल से दबाकर इसे निचोड़ लें. यही काम तीन बार करना है. उसके बाद एक पैन में सुअर की चर्बी, नमक तथा काली मिर्च मिलाकर इसे हल्की आंच में पकाना है.
इसे पकाने में समय लगता है और पकने के बाद यह बहुत जरा सा रह जाता है जैसा कि बाकी हरी पत्तीदार सब्जियों के साथ होता है. कुछ लोग कहते हैं कि पोक सैलेट का स्वाद पालक या शलगम की पत्ती जैसा होता है जिसमें बाद में खनिज का स्वाद आता है.
अब सवाल यह है कि अगर इसका स्वाद बाकी पत्तीदार सब्जियों जैसा ही है तो इतना कष्ट उठाए ही क्यों? दरअसल लोगों का मानना है कि इसमें स्वाद और अन्य सामग्री से कुछ अन्य बातों का प्रतिनिधित्व झलकता है. इसमें आपकी पहचान और उन स्थानों से आपका जुड़ाव भी झलकता है.