स्वच्छता का पर्याय हैं माता शीतला

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होली के बाद से ही उत्सव ,व्रत, त्यौहार का सिलसिला आरंभ हो जाता है ।पहले चौथ को आश माता का व्रत, और आज अष्टमी को शीतला माता का पूजन है।बचपन से ही घर में शीतला माता की पूजा होती देखते आ रहे है ।

इस दिन माता की पूजा की जाती है, तथा साथ में माता की सवारी गर्दभ की पूजा भी की जाती है ।यह भी हमारे धार्मिक परंपरा का कमाल है कि जिसमें मूर्ख का पर्याय गधे की भी पूजा की जाती है । इस त्योहार में पहले दिन ही भोजन सामग्री तैयार कर अगले दिन माता को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और वही भोजन सभी को ग्रहण करना होता है।सभी उत्सवों में बस इसी दिन बासी भोजन का प्रसाद चढाया और खाया जाता है ।

सबसे मजेदार बात तो यह लगती थी कि मां माता स्वरूप “मटकी” के आगे हम बच्चों को लेटाकर गधों की तरह लौटाती थी और प्रार्थना करती थी हे!माता मेरे बच्चों को सभी प्रकार के रोगों से बचाए रखना।

चैत्र माह की कृष्ण पक्ष को शीतला माता की पूजा की जाती है । इस पर्व को बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक मां शीतला की आराधना कई तरह के दुष्प्रभावों से मुक्ति दिलाती है। ऐसी मान्यता है माता शीतला का व्रत रखने से तमाम तरह की बीमारियां दूर हो जाती है। साथ ही व्यक्ति पूरे साल चर्म रोग तथा चेचक और कई बीमारियों से दूर रहता है।ऐसी हमारी मान्यता और श्रद्धा है।

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देवी शीतला की पूजा से पर्यावरण को स्वच्छ व सुरक्षित रखने की प्रेरणा प्राप्त होती है तथा ऋतु परिवर्तन होने के संकेत मौसम में कई प्रकार के बदलाव लाते हैं और इन बदलावों से बचने के लिए साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है। शीतला माता स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं और इसी संदर्भ में शीतला माता की पूजा से हमें स्वच्छता की प्रेरणा मिलती है।

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