वृन्दावन से शुरू हुई थी रंगों वाली होली

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होली का त्योहार प्रकृति को नई ऊर्जा प्रदान करता है। फाल्गुन माह में आने के कारण इस त्योहार को फाल्गुनी भी कहते हैं। कहा जाता है कि होली पर रंगों से खेलने से स्वास्थ्य पर इनका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। होली के दिन ही भगवान मनु का जन्म हुआ था। भक्त प्रहलाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था, जिसके खुशी में लोगों ने होली का त्योहार मनाया था। इसी पूर्णिमा को भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला रचाई थी और दूसरे दिन रंग खेलने का उत्सव मनाया। रंग खेलने की परंपरा का आरंभ वृंदावन से हुआ।

यह त्योहार परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता है और पूर्ण चंद्र की पूजा करने की परंपरा है। इस त्योहार के बाद चैत्र माह का आरंभ होता है। यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक भी है। होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है। इस दिन लोग रंगों से खेलते हैं। महाभारत काल में युधिष्ठिर ने होली का महत्व बताते हुए कहा था कि इस दिन लोगों को भय रहित क्रीडा करनी चाहिए। होली के दिन हंसने, नाचने गाने से पापात्मा का अंत हो जाता है। होली पर किसान अपने खेत के अधपके अनाज का हवन कर भगवान को भोग लगाते हैं।

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