कोहीनूर से भी बड़े इस हीरे को कभी पेपरवेट की तरह इस्तेमाल किया जाता था
कहते हैं हीरे औरत की कमजोरी होती है. हर लड़की की तमन्ना होती है कि उसकी सगाई में उसका मंगेतर उसे हीरे की अंगूठी पहनाये. लेकिन आपने आज तक कितना बड़ा हीरा देखा है? किसी को कान की बालियों में हीरा पहने देखा होगा किसी की अंगूठी में देखा होगा… या ज्यादा से ज्यादा किसी को हीरों के हार पहने देखा होगा…
लेकिन क्या आप को पता है कि पुराने जमाने में हैदराबाद के निज़ाम हीरे का इस्तेमाल ‘पेपर वेट’ के तौर पर करते थे. इतना ही नहीं एक निज़ाम तो अंग्रेजों की नज़र से छुपाने के लिए इसे जूतों में पहना करते थे. यकीन नहीं आता, तो आप खुद भी इस हीरे को देख सकते हैं. इस हीरे का एक नाम भी है – जैकब डॉयमंड . दिल्ली के राष्ट्रीय संग्राहलय में हैदराबाद के निज़ाम के आभूषणों की प्रदर्शनी लगी है. ये हीरा दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में जारी प्रदर्शनी में रखा गया है.ये दुनिया का सातवां सबसे बड़ा हीरा है. जो साइज़ में कोहिनूर से भी बड़ा है. इस हीरे की कीमत है 900 करोड़ रुपए. इस हीरे की आज की कीमत सुन कर शायद आप भी पीछे के ‘जीरो’ गिनने लग जाएं. फिलहाल इस हीरे का मालिकाना हक़ भारत सरकार के पास है.
‘जैकब डॉयमंड’ की कहानी
भारत सरकार को कैसे मिले इस हीरे के मालिकाना हक़ इसकी कहानी भी दिलचस्प है. हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली खान पाशा ने इसे जैकब नाम के हीरा व्यापारी से खरीदा था. इसलिए इस हीरे का नाम जैकब डॉयमंड पड़ गया. वैसे इस हीरे को इंपीरियल या ग्रेट वाइट और विक्टोरिया नाम से भी जाना जाता है. ये हीरा दक्षिण अफ्रीका की किंबर्ली खान में मिला था. तराशने से पहले इस हीरे का वज़न 457.5 कैरट था और उस समय इसे संसार के सबसे बड़े हीरे में से एक माना जाता था. उसके बाद इस हीरे की चोरी हो गई और इसे पहले लंदन और बाद में हॉलैंड की एक कंपनी को बेच दिया गया. इसे हॉलैंड की महारानी के सामने भी तराशा गया और तब इसका वजन 184.5 कैरट रह गया. बात 1890 की है. मैल्कम जैकब नाम के हीरा व्यापारी ने हैदराबाद के छठे निज़ाम महबूब अली खान पाशा को इस हीरे का एक नमूना दिखाया और असली हीरे को बेचने के लिए 1 करोड़ 20 लाख की पेशकश रखी. लेकिन निज़ाम केवल 46 लाख ही देने के लिए तैयार हुए. हालांकि इस पर भी सौदा तय हो गया. आधी रकम लेने के बाद जैकब ने इंग्लैंड से हीरा मंगवा भी लिया लेकिन निज़ाम ने बाद में इस हीरे को लेने से मना कर दिया और अपने पैसे वापस मांगे.
दरअसल इसके पीछे की एक वजह ये भी बताई जाती है कि ब्रिटिश रेज़ीडेंट इस हीरे को खरीदने के विरोध में थे क्योंकि निज़ाम के ऊपर कर्ज़ा था. जैकब ने पैसे ना लौटाने के लिए कलकत्ता के उच्च न्यायलय में मुकदमा दायर किया. और 1892 में निज़ाम को ये हीरा मिल ही गया. जैकब हीरे के अलावा इस संग्रहालय में कफ़लिंक, सिरपेच, हार, झुमके, कंगन और अंगूठियां भी हैं. दिल्ली में ये प्रदर्शनी तीसरी बार लगी है. इससे पहले 2007 में इस हीरे की प्रदर्शनी लगी थी.
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