रोज नमक के रूप में प्लास्टिक खाते हैं आप
कहते हैं देखते हुए मक्खी नहीं निगली जाती. लेकिन हर रोज देखते हुए भी आप बड़ी मात्रा में प्लास्टिक खाते हैं. या यूं कह लीजिए कि खुद अपने हाथों से अपने खाने में प्लास्टिक को मिलाते हैं. कैसे? जानिये इस रिपोर्ट में –
आईआईटी मुंबई में किये गए एक रिसर्च रिपोर्ट में यह सामने आया है कि भारत में नमक के जितने भी नामी ब्रांड ब्रांड मौजूद हैं उनके नमक में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद हैं. इस रिसर्च में समुद्री नमक के 15 अलग अलग प्रतिष्ठित ब्रांड में प्रति किलोग्राम माइक्रोप्लास्टिक के 626 पार्टिकल्स तक पाए गए हैं. वहीं शहद में यह मात्रा 660 फाइबर प्रति किलोग्राम और बीयर में प्रति लीटर 109 फ्रेग्मेंट्स की है. इसका अर्थ यह है कि जो एक किलो नमक आप इस्तेमाल में लाते हैं उसमें 0.063 मिलीग्राम माइक्रोप्लास्टिक होता है. यानी अगर आप औसतन 5 ग्राम नमक हर रोज खाते हैं तो सालभर में आप 0.117 मिलीग्राम माइक्रोप्लास्टिक खा लेते हैं. इन नमक में जो माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है उसमें से 63% पार्टिकल्स फ्रेगमेंट के रूप में और 37% फाइबर के रूप में है. इस रिसर्च की जरूरत इसलिए भी थी क्योंकि भारत दुनिया के तीन सबसे ज्यादा नमक का उत्पादन करने वाले देशों में शामिल है.
क्या है माइक्रोप्लास्टिक
माइक्रोप्लास्टिक प्लास्टिक के छोटे कण होते हैं जो हमारे चारों ओर के वातावरण में पाए जाते हैं. इनका आकार 2 से 5 मिलीमीटर तक का होता है. ये प्लास्टिक के कणों के रूप में ही निर्मित होते हैं जिन्हें कॉस्मेटिक्स, टूथपेस्ट या एक्स्फ़ोलिएंट जैसी चीजों में मिलाया जाता है. इसके अलावा इनका निर्माण बड़े प्लास्टिक के टूटने पर होता है. जमीन पर, समुद्र और नदियों में इतने प्लास्टिक्स फेंके जाने लगे हैं कि समुद्र, नदियों और मिट्टी में भी माइक्रोप्लास्टिक की भारी मात्रा शामिल हो गयी है. इनका सेवन इन जगहों पर रहने वाले जीव करते हैं जिससे ये उनके शरीर में प्रवेश करते हैं. बाद में जब हम इन जीवों को खाते हैं तो उनसे भी ये माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं.
हर साल समुद्र में करीब 8.8 मिलियन टन प्लास्टिक कूड़ा फेंका जाता है. इसमें से 276000 टन प्लास्टिक समुद्र की सतह पर तैर रहा है. इस कूड़े को अपना भोजन समझकर उसे समुद्री जीव जंतु खा लेते हैं. इसलिए मुख्य रूप से यह सी फ़ूड के जरिये हमारे शरीर में पहुँचता है जिसमें माइक्रोप्लास्टिक की भारी मात्रा पायी जाती है. मछलियों के शरीर में जाने के बाद यह प्लास्टिक उनके लीवर में टॉक्सिक केमिकल का भी निर्माण करता है. समुद्री सीप और घोंघे में इसकी मात्रा सबसे ज्यादा होती है.
क्या प्रभाव डालता है हमारे शरीर पर
अब तक कई रिसर्च में यह बात सामने आ चुकी है कि जो भी पैकेज्ड फ़ूड हम खा रहे हैं उनमें से अधिकतर में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है. लेकिन इससे हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह अभी तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है. कुछ रिसर्च में यह जानने की कोशिश की जा रही है कि प्लास्टिक के ये कण इंसानों में पहले से मौजूद बीमारियों को किस तरह से प्रभावित करते हैं.
प्लास्टिक को लचीला बनाने के लिए फ्थालेट्स नाम का केमिकल इस्तेमाल में लाया जाता है. यह केमिकल ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को कई गुना बढ़ा देता है. इससे कैंसर के सेल्स में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है. जीवों पर इसका प्रभाव देखने के लिए चूहों को माइक्रोप्लास्टिक युक्त खाना खिलाया गया. यह माइक्रोप्लास्टिक उनके लीवर, किडनी, और आँतों में जाकर जमा हो गया. इसकी वजह से लीवर में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस मॉलीक्यूल की मात्रा तेजी से बढ़ने लगी. इसके अलावा इससे उन मॉलीक्यूल्स में भी वृद्धि दर्ज की गयी जो दिमाग के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं.
ये माइक्रोप्लास्टिक के कण भोजन के साथ हमारे शरीर में पहुँचने के बाद मल के साथ बाहर आने के बजाय आँतों से होते हुए पहले खून में और फिर अन्य ऑर्गन्स में प्रवेश कर जाते हैं. एक रिसर्च में 87% लोगों में इसकी अधिकतर मात्रा फेफड़ों में पायी गयी है. इसकी वजह हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स हैं जो सांस के साथ हमारे फेफड़ों में पहुँच रहे हैं.
इसके अतिरिक्त खाने को स्टोर करने वाले प्लास्टिक के पैकेजिंग और कंटेनर्स में बाईसफेनॉल-ए केमिकल पाया जाता है. यह केमिकल महिलाओं के रीप्रोडक्टिव हारमोन में बदलाव के लिए जिम्मेदार होता है.
अभी माइक्रोप्लास्टिक की जो मात्रा इन्सानों में पायी गयी है वो बहुत ही कम है. लेकिन आने वाले समय में जब यह मात्रा काफी अधिक हो जायेगी तब किसी नई तरह की प्लास्टिक जनित बीमारियों की संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता.
कैसे होगा बचाव –
अब तक ज्ञात अध्ययनों में सीफ़ूड खासकर शेलफिश में सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है. इसलिए कोशिश यही होनी चाहिए कि अच्छे पानी वाले सोर्स से आने वाले सीफूड का ही इस्तेमाल किया जाए. पैकेज्ड फ़ूड का इस्तेमाल कम से कम किया जाए. नमक में से माइक्रोप्लास्टिक को निकालने के लिए उसे फ़िल्टर करते समय सैंड फिल्टरेशन तकनीक को अपनाने की आवश्यकता है. इससे 85% तक माइक्रोप्लास्टिक को कम करने में मदद मिलती है. सफ़र के दौरान बोतलबंद पानी का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए. वैसे तो इनमें प्रति लीटर 44 माक्रोप्लास्टिक के पार्टिकल्स होते हैं. लेकिन जब इन्हें दुबारा इस्तेमाल किया जाता है तब यह मात्रा बढ़कर प्रति लीटर 250 पार्टिकल्स तक पहुँच जाती है.