इन बातों का नहीं है विज्ञान के पास कोई जवाब

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भारतीय सभ्यता और संस्कृति को प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक माना जाता है. यहाँ के प्राचीन काल की सभ्यता काफी विकसित थी जिसके प्रमाण यदा कदा खुदाइयों में मिले अवशेषों से मिलते रहते हैं. लेकिन कई ऐसी भी चीजें यहाँ पाई गयी हैं जो साइंस और आज के टेक्नोलॉजी को भी चुनौती देते नजर आते है. आइये जानते हैं कुछ ऐसे ही अनसुलझे रहस्यों के बारे में.

एक बार ओशो ने जानकारी दी थी कि 1937 में तिब्‍बत और चीन के बीच बोकाना पर्वत की एक गुफा में 716 पत्‍थर के रिकार्डर मिले हैं- पत्‍थर के. आकार में वे रिकॉर्ड जैसे ही हैं. महावीर से 10 हजार साल पुराने यानी आज से कोई साढ़े 13 हजार साल पुराने ये रिकॉर्डर बड़े आश्‍चर्य के हैं. क्‍योंकि ये रिकॉर्डर ठीक वैसे ही हैं, जैसे ग्रामोफोन का रिकॉर्ड होता है. ठीक उसके बीच में एक छेद है और पत्‍थर पर ग्रूव्‍ज है, जैसे कि ग्रामोफोन के रिकॉर्ड पर होते हैं. अब तक यह पता नहीं चल सका है कि वे किस यंत्र पर बजाए जा सकेंगे.

रूस के एक बड़े वैज्ञानिक डॉ. सर्जीएव ने वर्षों तक मेहनत करके यह प्रमाणित कर दिया है कि वे हैं तो रिकॉर्ड ही. लेकिन किस यंत्र पर और किस सुई के माध्‍यम से उन्हें बजाया जा सकेगा यह अभी तय नहीं हो सका है. अगर एकाध पत्‍थर का टुकड़ा होता तो इसे संयोग माना भी जा सकता था लेकिन यहाँ ऐसे 716 रिकॉर्ड मौजूद हैं. सब एक जैसे, जिनमें बीच में छेद है. सब पर ग्रूव्‍ज है और जब उनकी पूरी तरह सफाई कर दी गई और जब विद्युत यंत्रों से उनकी परीक्षा की गई तब और भी हैरान करने वाली बात सामने आई की उनसे हर पल विद्युत की किरणें विकिरणित हो रही हैं. लेकिन क्‍या आदमी के आज से 12 हजार साल पहले ऐसी कोई व्‍यवस्‍था थी कि वह पत्‍थरों में कुछ रिकॉर्ड कर सके? यह तो पूरा का पूरा इतिहास बदलने वाली बात हो जायेगी.

भारत में ऐसे कई स्थान हैं जिनका आज भी रहस्य बरकरार है. यहां प्रस्तुत हैं प्रमुख 10 अनसुलझे रहस्य. इन्हें आप भी जानिये और समझने की कोशिश कीजिये.

रहस्यों से भरे मंदिर –
भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां तहखानों में लाखों टन खजाना दबा हुआ है. उदाहरण के लिए केरल के श्रीपद्मनाभम मंदिर के 7 तहखानों में लाखों टन सोना दबा हुआ है. उसके 6 तहखानों में से करीब 1 लाख करोड़ का खजाना तो निकाल लिया गया है, लेकिन 7वें तहखाने को खोलने पर राजपरिवार ने सुप्रीम कोर्ट से आदेश लेकर रोक लगा रखी है. आखिर ऐसा क्या है उस तहखाने में कि जिसे खोलने से वहां तबाही आने की आशंका जाहिर की जा रही है? कहते हैं उस तहखाने का दरवाजा किसी विशेष मंत्र से बंद है और वह मंत्र से ही खुलेगा.

वृंदावन का एक मंदिर अपने आप ही खुलता और बंद हो जाता है. कहते हैं कि निधिवन परिसर में स्थापित रंगमहल में भगवान कृष्ण रात में शयन करते हैं. रंगमहल में आज भी प्रसाद के तौर पर माखन-मिश्री रोजाना रखा जाता है. सोने के लिए पलंग भी लगाया जाता है. सुबह जब आप इन बिस्तरों को देखें, तो साफ पता चलेगा कि रात में यहां जरूर कोई सोया था और प्रसाद भी ग्रहण कर चुका है. इतना ही नहीं, अंधेरा होते ही इस मंदिर के दरवाजे अपने आप बंद हो जाते हैं इसलिए मंदिर के पुजारी अंधेरा होने से पहले ही मंदिर में पलंग और प्रसाद की व्यवस्था कर देते हैं.
मान्यता के अनुसार, यहां रात के समय कोई नहीं रहता है. इंसान छोड़िए, पशु-पक्षी भी नहीं. ऐसा बरसों से लोग देखते आए हैं, लेकिन रहस्य के पीछे का सच धार्मिक मान्यताओं के सामने छुप-सा गया है. यहां के लोगों का मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस परिसर में रात में रुक जाता है तो वह तमाम सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.

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अश्वत्थामा :
महाभारत के अश्वत्थामा याद हैं आपको? कहा जाता है कि अश्वत्थामा का वजूद आज भी है. दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने निकले अश्वत्थामा को उनकी एक चूक भारी पड़ी और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें युगों-युगों तक भटकने का श्राप दे दिया. ऐसा कहा जाता है कि पिछले लगभग 5 हजार वर्षों से अश्वत्थामा भटक रहे हैं.

मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किमी दूर असीरगढ़ का किला है. कहा जाता है कि इस किले में स्थित शिव मंदिर में अश्वत्थामा आज भी पूजा करने आते हैं. स्थानीय निवासी अश्वत्थामा से जुड़ी कई कहानियां सुनाते हैं. वे बताते हैं कि अश्वत्थामा को जिसने भी देखा, उसकी मानसिक स्थिति हमेशा के लिए खराब हो गई. इसके अलावा कहा जाता है कि अश्वत्थामा पूजा से पहले किले में स्थित तालाब में नहाते भी हैं.
बुरहानपुर के अलावा मप्र के ही जबलपुर शहर के गौरीघाट (नर्मदा नदी) के किनारे भी अश्वत्थामा के भटकने का उल्लेख मिलता है. स्थानीय निवासियों के अनुसार, कभी-कभी वे अपने मस्तक के घाव से बहते खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल की मांग भी करते हैं. इस संबंध में हालांकि स्पष्ट और प्रामाणिक आज तक कुछ भी नहीं मिला है.

समुद्र के नीचे द्वारिका :


गुजरात के तट पर भगवान श्रीकृष्ण की बसाई हुई नगरी यानी द्वारिका. इस जगह का धार्मिक महत्व तो है ही, रहस्य भी कम नहीं है. कहा जाता है कि कृष्ण की मृत्यु के साथ उनकी बसाई हुई यह नगरी समुद्र में डूब गई. आज भी यहां उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं. लेकिन प्रमाण आज तक नहीं मिल सका कि यह क्या है. विज्ञान इसे महाभारतकालीन निर्माण नहीं मानता. काफी समय से जाने-माने शोधकर्ताओं ने यहां पुराणों में वर्णित द्वारिका के रहस्य का पता लगाने का प्रयास किया, लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित कोई भी अध्ययन कार्य अभी तक पूरा नहीं किया गया है. 2005 में द्वारिका के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए अभियान शुरू किया गया था. इस अभियान में भारतीय नौसेना ने भी मदद की.अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छंटे पत्थर मिले और यहां से लगभग 200 अन्य नमूने भी एकत्र किए, लेकिन आज तक यह तय नहीं हो पाया कि यह वही नगरी है अथवा नहीं जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था. आज भी यहां वैज्ञानिक स्कूबा डायविंग के जरिए समंदर की गहराइयों में कैद इस रहस्य को सुलझाने में लगे हैं.

कैलाश पर्वत :
इसे दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत माना जाता है. यहां अच्छी आत्माएं ही रह सकती हैं. इसे अप्राकृतिक शक्तियों का केंद्र माना जाता है. यह पर्वत पिरामिडनुमा आकार का है. वैज्ञानिकों के अनुसार यह धरती का केंद्र है. यह एक ऐसा भी केंद्र है जिसे एक्सिस मुंडी कहा जाता है. एक्सिस मुंडी अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र. यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहां दसों दिशाएं मिल जाती हैं. रशिया के वैज्ञानिकों अनुसार एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं.

कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के चार दिक् बिंदुओं के सामान है और एकांत स्थान पर स्थित है, जहां कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है. कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध है, पर 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढ़ाई की थी. रशिया के वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट ‘यूएनस्पेशियल’ मैग्जीन के 2004 के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई थी.
कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्रोतों से घिरा है- सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलुज और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर इसके आधार हैं। पहला, मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार सूर्य के समान है तथा राक्षस झील जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के समान है. ये दोनों झीलें सौर और चन्द्र बल को प्रदर्शित करती हैं जिसका संबंध सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से है. जब दक्षिण से देखते हैं तो एक स्वस्तिक चिह्न वास्तव में देखा जा सकता है.
कैलाश पर्वत और उसके आसपास के वातावरण पर अध्ययन कर चुके रशिया के वैज्ञानिकों ने जब तिब्बत के मंदिरों में धर्मगुरुओं से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है जिसमें तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथिक संपर्क करते हैं. यह पर्वत मानव निर्मित एक विशालकाय पिरामिड है, जो एक सौ छोटे पिरामिडों का केंद्र है. रामायण में भी इसके पिरामिडनुमा होने का उल्लेख मिलता है.
यति यानी हिम मानव को देखे जाने की चर्चाएं होती रहती हैं. इनका वास हिमालय में होता है. लोगों का कहना है कि हिमालय पर यति के साथ भूत और योगियों को देखा गया है, जो लोगों को मारकर खा जाते हैं.

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सोन भंडार गुफा :


बिहार के राजगीर में छुपा है मौर्य शासक बिम्बिसार का अमूल्य स्वर्ण भंडार. बिहार का एक छोटा-सा शहर राजगीर, जो कि नालंदा जिले में स्‍थित है, कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जाता है. यह शहर प्राचीन समय में मगध की राजधानी था. यहीं पर भगवान बुद्ध ने मगध के सम्राट बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिया था. यह शहर बुद्ध से जुड़े स्मारकों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहाँ मौजूद गुफा के बारे में कहा जाता है कि इसमें बेशकीमती खजाना छुपा है जिसे कि आज तक कोई नहीं खोज पाया है. यह खजाना मौर्य शासक बिम्बिसार का बताया जाता है, हालांकि कुछ लोग इसे पूर्व मगध सम्राट जरासंध का भी बताते हैं.

अलेया भूत लाइट :


पश्चिम बंगाल के दलदली इलाकों में कई बार रहस्यमयी रोशनी देखे जाने की जानकारी मिलती है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, यह उन मछुआरों की आत्माएं हैं, जो मछली पकड़ते वक्त किसी वजह से मर गए थे. लोग इन्हें भूतों की रोशनी भी कहते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि जिन मछुआरों को यह रोशनी दिखती है, वे या तो रास्ता भटक जाते हैं या ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह पाते. इन दलदली क्षेत्रों से कई मछुआरों की लाशें भी मिली हैं, लेकिन स्थानीय
प्रशासन यह मानने को तैयार नहीं कि यह भूतों के चलते ऐसा हुआ. उनके मुताबिक, मछुआरों के साथ अक्सर ऐसी दुर्घटनाएं होती रहती हैं. हालांकि अभी तक इस रहस्य से भरी गुत्थी सुलझ नहीं पाई है. वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि दलदली क्षेत्रों में अक्सर मीथेन गैस बनती है और वे किसी तत्व के संपर्क में आने से रोशनी पैदा करती है।

रूपकुंड झील :
यह नदी हिमालय पर्वतों में स्थित है. इस तट पर मानव कंकाल पाए गए हैं. पिछले कई वर्षों से भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के विभिन्न समूहों ने इस रहस्य को सुलझाने के कई प्रयास किए, पर वे नाकाम रहे.

भारत के उत्तरी क्षेत्र में खुदाई के समय नेशनल जिओग्राफिक (भारतीय प्रभाग) को 22 फुट का विशाल नरकंकाल मिला है. उत्तर के रेगिस्तानी इलाके में एम्प्टी क्षेत्र के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र सेना के नियंत्रण में है. यह वही इलाका है, जहां से कभी प्राचीनकाल में सरस्वती नदी बहती थी.
इस कंकाल को वर्ष 2007 में नेशनल जिओग्राफिक की टीम ने भारतीय सेना की सहायता से उत्तर भारत के इस इलाके में खोजा. 8 सितंबर 2007 को इस आशय की खबर कुछ समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुई थी. हालांकि इस तरह की खबरों की सत्यता की कोई पुष्टि नहीं हुई है. इस मामले में जब तक कोई अधिकृत बयान नहीं जारी होता, इन्हें असत्य ही माना जाता है.

बताया जाता है कि कद-काठी के हिसाब से यह कंकाल महाभारत के भीम पुत्र घटोत्कच के विवरण से मिलता-जुलता है. हालांकि इसकी तुलना अमेरिका में पाए जाने वाले बिगफुट से भी की जा रही है जिनकी औसत हाइट अनुमानत: 8 फुट की है. इसकी तुलना हिमालय में पाए जाने वाले यति से भी की जा रही है, जो बिगफुट के समान ही है. माना जा रहा है कि इस तरह के विशालकाय मानव 5 लाख वर्ष पूर्व से 1 करोड़ 20 लाख वर्ष पूर्व के बीच में धरती पर रहा करते थे जिनका वजन लगभग 550 किलो हुआ करता था. यह कंकाल देखकर पता चलता है कि किसी जमाने में भारत में ऐसे विशालकाय मानव भी रहा करते थे. माना जा रहा है कि भारत सरकार द्वारा अभी इस खोजबीन को गुप्त रखा जा रहा है. खास बात यह है कि इतने बड़े मनुष्य के होने का कहीं कोई प्रमाण अभी तक प्राप्त नहीं हो सका था. क्या सचमुच इतने बड़े आकार के मानव होते थे? यह पहला प्रमाण है जिससे कि यह सिद्ध होता है कि उस काल में कितने ऊंचे मानव होते थे.

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जतिंगा गांव :
असम में स्थित यह गांव पक्षी आत्महत्या की घटनाओं के लिए सुर्खियों में बना हुआ है. कहा जाता है कि पक्षी यहां आकर आत्महत्या करते हैं. जापान के माउंट फूजी तलहटी में आवकिगोहारा के घने जंगल में जिस तरह से लोग आत्महत्या करने आते हैं, ठीक उसी तरह से मानसून की बोझिल रात में जतिंगा के आसमान पर मंडराने लगता है मौत का काला साया. रोशनी की ओर झुंड के झुंड पखेरू आते हैं और काल के गाल में समा जाते हैं.

चिड़ियों के इस प्रकार सामूहिक आत्महत्या के पीछे क्या कारण है इस बात का पता आज तक नहीं लगाया जा सका। इस बात का पता लगाने के लिए कई शोध हो चुके हैं, परंतु प्रकृति के इस गूढ़ रहस्य के बारे में अभी भी ठोस रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता. असम के कछार स्थित इस घाटी के रहस्यों को जानना जरूरी है.

भारत की गुफाएं :
भारत में बहुत सारी प्राचीन गुफाएं हैं, जैसे बाघ की गुफाएं, अजंता- एलोरा की गुफाएं, एलीफेंटा की गुफाएं और भीम बेटका की गुफाएं. ये सभी गुफाएं किसने और कब बनाईं? इसका रहस्य अभी सुलझा नहीं है. अखंड भारत की बात करें तो अफगानिस्तान के बामियान की गुफाओं को भी इसमें शामिल किया जा सकता है. भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैलचित्र बने हैं. यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को कुछ इतिहासकार 35 हजार वर्ष पुराना मानते हैं, तो कुछ 12,000 साल पुरानी.

मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित पुरापाषाणिक भीमबेटका की गुफाएं भोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं. ये विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुई हैं. भीमबेटका मध्यभारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है. पूर्व पाषाणकाल से मध्य पाषाणकाल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा.

तिब्बत का यमद्वार :


प्राचीन काल में तिब्बत को त्रिविष्टप कहते थे. यह अखंड भारत का ही हिस्सा हुआ करता था. तिब्बत को चीन ने अपने कब्जे में ले रखा है. तिब्बत में दारचेन से 30 मिनट की दूरी पर है यह यम का द्वार. यम का द्वार पवित्र कैलाश पर्वत के रास्ते में पड़ता है. हिंदू मान्यता अनुसार, इसे मृत्यु के देवता यमराज के घर का प्रवेश द्वार माना जाता है. यह कैलाश पर्वत की परिक्रमा यात्रा के शुरुआती प्वाइंट पर है. तिब्बती लोग इसे चोरटेन कांग नग्यी के नाम से जानते हैं, जिसका मतलब होता है दो पैर वाले स्तूप. ऐसा कहा जाता है कि यहां रात में रुकने वाला जीवित नहीं रह पाता. ऐसी कई घटनाएं हो भी चुकी हैं, लेकिन इसके पीछे के कारणों का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है. साथ ही यह मंदिरनुमा द्वार किसने और कब बनाया, इसका कोई प्रमाण नहीं है. ढेरों शोध हुए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका.

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