न्याय की देवी…अब तो खोलो आँखों की ये पट्टी!
बिकती यहाँ है मानवता भी,
सरेशाम बाजारों में
बिकते यहाँ कानून के रक्षक,
महज चंद हजारों में
मिथ्या मे उलझानेवाली
यहाँ वकालत फलती है
यहाँ झूठ फरेब के दम पर,
न्याय दूकानें चलती है
न्याय यहाँ निर्धन को मिलना,
लगता बहुत बेमानी है
“भेद नहीं कानून दृष्टि में”,
बस एक गढी कहानी है ।
राज यहाँ कानून पे करते
जो सम्पति के स्वामी हैं
श्रीहीन के ग्रीव लगाता
न्याय यहाँ गरदामी है
कोटि सहस्र डकारनेवाले
इज्जत से यहाँ रहते हैं
है जिनकी ईमान अमानत
वे ही जिल्लत सहते हैं
कानून के निर्माता स्वयं ही,
समझे इसको खेल यहाँ
दो कौड़ी के चोर उचक्के
जाते केवल जेल यहाँ
सत्ता के गलियारों में
कानून की कोई धाक कहाँ
सज्जन के दरवाजों पर
कानून छानता खाक यहाँ
सौ दो सौ खाकर बाबू भी
जाते भले हों जेल यहाँ
सौ करोड़ जो खानेवाला
लगता कानून फेल वहाँ
न्याय की देवी खोल लो अब तो
लगी जो पट्टी आँखों पर
देख जरा लग चुका है बट्टा
बिल्कुल तेरे साखों पर ।