यूं ही नहीं मेरे शब्दों का जमाना दीवाना है

कोरोना तो महज एक बहाना है, असल मकसद तो कर्मफल चुकाना है। सालों से पिंजरे में कैद थी चिड़िया, अब

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जितने तारे समेटने है समेट लेना मेरे चाँद

जब तक उनको कुछ समझ आता, उससे पहले वही खड़ा रहा, उनके इनकार करने तक का इंतज़ार किया है मैंने,

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