क्या है हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन जिसकी दुनिया भर में है जबरदस्त डिमांड
आज पूरी दुनिया जब कोरोना के इलाज के लिए परेशान है. इसके लिए अभी तक न कोई दवा बन पाई है और न ही कोई वैक्सीन. इसी दौरान रिसर्च में सामने आया है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाई कोरोना वायरस से लड़ने में मददगार है. इसी के चलते पूरी दुनिया में अचानक इसकी मांग बढ़ गई है.
अमेरिका सहित दुनिया के तमाम देश जिसमें इटली और ब्रिटेन भी शामिल हैं, वो भारत से उम्मीद कर रहे हैं कि कोविड 19 के इलाज में कारगर इस दवाई का भारत निर्यात कर दे. बता दें कि भारत में ये एक एंटी मलेरिया ड्रग के तौर पर इस्तेमाल हो रही है हालांकि ये ड्रग काफी पुरानी है. लेकिन भारत में मलेरिया के प्रकोप के चलते भारत इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है.
अभी तक भारत में HCQ का उत्पादन हर साल 20 करोड़ यूनिट्स तक होता आया था. लेकिन अब एक महीने में ही 20 करोड़ यूनिट्स HCQ के उत्पादन की क्षमता जुटा ली गई है.
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा क्या है?
दरअसल, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने में कारगर दवा है. रिसर्च में सामने आया है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना वायरस से लड़ने में मददगार है. ये सिर्फ कोरोना को ठीक करने में कारगर नहीं है बल्कि अन्य दवाओं के साथ मिलाकर इससे बहुत अच्छे परिणाम आते हैं. इस बात को अमेरिकी डॉक्टर्स ने भी माना है.
अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन से तुरंत मंजूरी के बाद, कुछ अन्य दवाओं के संयोजन के साथ मलेरिया की दवा (हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन ) से लगभग 1500 रोगियों का न्यूयॉर्क में उपचार किया जा रहा है और परिणाम अच्छे आ रहे हैं.
यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुद 5 अप्रैल 2020 को भारत के प्रधानमंत्री मोदी से बात करके इस दवा के निर्यात पर लगी रोक हटाने और अमेरिका को इसका निर्यात करने की अपील की.
बता दें कि भारत ने कोरोना वायरस संकट को देखते हुए इस ड्रग के निर्यात पर कुछ समय पहले रोक लगा दी थी. लेकिन अब भारत ने इस ड्रग को लाइसेंस्ड कैटेगरी में डाल दिया है. इसका मतलब है कि भारत में अपनी जरूरत पूरी होने के बाद ड्रग का स्टॉक सरप्लस है तो उसे निर्यात किया जा सकेगा यानी अमेरिका भी भेजा जा सकेगा. ड्रग को बनाने के लिए जरूरी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट के अगले 4 महीने तक चीन से आयात की जरूरत नहीं है. यहां जितना ड्रग का निर्माण होता है, उसका करीब 75-80% हर साल निर्यात होता है.