वीमेंस डे स्पेशल: पुणे की 14 साल की जुई केसकर ने बनाया पार्किंसन पेशेंट्स के लिए कमाल का उपकरण
पुणे की रहने वाली 14 साल की जुई केसकर हमेशा यही सोचती थी कि आखिर उनके चाचा के हिलते हाथ को कोई थामकर ठीक क्यों नहीं कर देता है? तमाम बीमारियों का इलाज करने वाले डॉक्टरों के पास इसके लिए कोई दवा क्यों नहीं है? थोड़ी बड़ी होने के बाद उसे समझ आया कि चाचा को पार्किसंस बीमारी है और इसका कोई इलाज नहीं है.
14 साल की जुई केसकर ने एक डिवाइस बनाया है. इस डिवाइस से पार्किंसंस से पीड़ित लोगों को फायदा होगा. pic.twitter.com/2ShXKIHY6r
— BBC News Hindi (@BBCHindi) February 28, 2021
नौ साल से डॉक्टरों को उपचार करते देख वो एक ही बात समझ पाई कि कंपन (झटकों की आवृत्ति) देखकर ही दवाई बढ़ाई या घटाई जाती है. हालांकि डॉक्टरों के पास कंपन नापने का कोई उपकरण नहीं था. वे सिर्फ अनुभव के आधार पर ही दवाई देते थे. यह बात जुई को बिल्कुल अच्छी नहीं लगी. यहीं से जुई के मन में विचार आया कि एक ऐसी मशीन होनी चाहिए जिससे वो चाचा के शरीर में होने वाले बढ़ते-घटते कंपन को नाप सके. स्कूल, पढ़ाई और रोजमर्रा की व्यस्तताओं के बीच एकाग्र होकर सोचने का वक्त ही नहीं मिला.
फिर कोविड-19 का समय आया तो जुई को अपने विचारों को मूर्त रूप देने का समय मिला. उसने पार्किसंस बीमारी के बारे में पढ़ना शुरू किया और फिर जरूरत के अनुसार उस पर काम शुरू किया. जुई का मानना था कि झटके को मापकर उसके अनुरूप दवाई देने के लिए शरीर के कंपन का डाटा जरूरी है. इसके लिए जे टेमर थ्री-डी बनाया. दस्ताने की तरह का यह उपकरण सेंसर, एक्सेलेरोमीटर और गायरो मीटर से लैस है.
यह उपकरण सॉफ्टवेयर से जुड़ा होता है जो पार्किसंस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में होने वाले 1/10 वें सेकंड के झटके को ट्रैक करने में सक्षम है. क्लाउड डाटाबेस के जरिये डाटा संग्रहित किया जाता है. जुई का कहना है कि इस डिवाइस की प्रेरणा उन्हें पढ़ी गई एक पंक्ति से मिली. जिसमें लिखा था कि कोई भी चीज को तब तक नियंत्रित नहीं कर सकते, जब तक उसे मापा नहीं जा सके. इस बात ने मेरे दिमाग पर असर किया. और मैंने सोचा कि चाचा को आने वाले झटके को नियंत्रित करने के लिए सबसे पहले उसे नापना होगा. और इस तरह बना यह कमाल का उपकरण.