मकर संक्रांति पौराणिक कथा : क्यों जला दिया था सूर्यदेव ने शनिदेव का घर

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मकर संक्रांति पूरे भारत में अलग अलग नामों से मनाई जाती है. इस त्योहार के बारे में कई पौराणिक कथाएं मौजूद हैं. सबसे पहली कथा श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण में बताई गई है. इस कथा के मुताबिक शनि महाराज का अपने पिता सूर्यदेव से मनमुटाव था. क्योंकि सूर्यदेव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेदभाव करते हुए देख लिया था. इस बात से नाराज सूर्य देव ने छाया और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था. इससे नाराज शनिदेव और छाया ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था.

सूर्यदेव ने शनिदेव का घर जला दिया

सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से पीड़ित देखकर यमराज को काफी दुख हुआ और उन्होंने इस रोग से पिता को मुक्ति दिलाने के लिए तपस्या भी की थी. शनि की राशि कुम्भ है जहां वह निवास करते हैं. सूर्यदेव ने क्रोध में आकर शनि महाराज के घर कुंभ को अपने तेज से जला दिया था. इससे शनि देव और उनकी माता छाया को कष्ट भोगने पड़े. यमराज ने अपनी सौतेली माता और अपने भाई शनि को कष्टों में देखकर उनके कल्याण के लिए सूर्यदेव को काफी समझाया.

कैसे हुई तिल से पूजा करने की परंपरा

यमराज के समझाने पर सूर्य देव जब शनि के निवास कुंभ में पहुंचे तो वहां सबकुछ जला हुआ था. उस समय शनिदेव के पास काले तिल के अलावा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने काले तिल से ही उनकी पूजा की. शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने शनि महाराज को आशीर्वाद दिया कि जब वह शनि के दूसरे घर मकर राशि में प्रवेश करेंगे तो वह धन-धान्य से भर जाएगा. तिल के कारण ही शनि महाराज को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था, इसलिए शनि महाराज को तिल काफी प्रिय हैं. इसी वजह से मकर संक्रांति के दिन तिल से सूर्य देव और शनि महाराज की पूजा का नियम शुरू हुआ और इसे तिल संक्रांति के नाम भी जाना जाने लगा.

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इस दिन गंगा आईं थीं धरती पर

मकर संक्रांति पर दूसरी कथा मिलती है कि मकर संक्रांति के दिन गंगाजी अपने भक्त भागीरथ के पीछे-पीछे कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. इसलिए इस खास दिन गंगाजी में स्नान करने का विशेष महत्व है. इसी दिन भागीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था और गंगाजी ने तर्पण स्वीकार किया था. इसी कारण मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में मेला का आयोजन किया जाता है.

भीष्म पितामाह ने त्यागी थी देह

मकर संक्रांति की अन्य कथा यह भी मिलती है कि मकर संक्रांति के दिन ही महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह को त्याग दिया था. भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के मकर राशि में आने का इंतजार किया था. माना जाता है कि सूर्य के उत्तरायण के समय देह त्यागने वाली आत्माएं, सीधे देवलोक में जाती हैं. जिससे आत्मा जन्म-मरण के बंधंन से मुक्त हो जाती हैं.

भगवान विष्णु ने किया था असुरों का अंत

मकर संक्रांति पर एक कथा यह भी मिलती है कि भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी. भगवान ने सभी असुरों को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था. इस दिन बुराई और नकारात्मकता का अंत हुआ था. मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं, वहीं कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं.

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