जानिए क्या है यूरिन एक्सप्रेस, आपका मूत्र कैसे देगा प्रकृति को पोषण

Spread the love

कैसा हो अगर क्रिकेट स्टेडियम की घास को खिलाड़ी और फैन्स के यूरिन से हरा भरा रखा जाए. सुनने में यह भले ही अजीब सा लगे, लेकिन स्विट्जरलैंड की एक खोज विज्ञान को इसी दिशा में ले जा रही है. खोज को नाम दिया गया है, “यूरीन एक्सप्रेस.” फसलें उगाने के लिए फॉस्फोरस जरूरी है. लेकिन इसके प्राकृतिक भंडार सिकुड़ते जा रहे हैं. अब इंसानी मूत्र से इसकी कमी पूरी की जाएगी.

इसके तहत एक चलता फिरता ट्रीटमेंट प्लांट घास से भरे स्टेडियमों के पास लगाया जाएगा. स्टेडियम से निकलने वाले इंसानी मूत्र को इस प्लांट तक लाया जाएगा और फिर उससे फॉस्फोरस बनाया जाएगा.

इस तरीके से फॉस्फोरस जैसा खनिज भी मिलेगा और पानी की बर्बादी भी कम होगी. आम तौर पर एक लीटर मूत्र को बहाकर साफ करने के लिए हम 100 लीटर पानी इस्तेमाल करते हैं.

ऐसा ही एक प्रयोग पानी की भारी किल्लत से जूझ रहे दक्षिण अफ्रीका में भी चल रहा है. वहां मूत्र से उर्वरक अलग किए जा रहे हैं. और फिर पानी को शुद्ध कर दोबारा इस्तेमाल में लाया जाता है.

क्या है यह तकनीक

स्टील के एक टैंक में मूत्र को जमा किया जाता है. फिर उसमें बैक्टीरिया, शैवाल के साथ कुछ अन्य चीजें मिलाई जाती है. इस दौरान तरल अपशिष्ट का काफी हिस्सा गाढ़ेपन के साथ ठोस होने लगता है. साथ ही पानी उससे अलग होने लगता है. इस पानी से प्रदूषक, कीटाणु और दुर्गंध को दूर किया जाता है. अंत में पानी 90 फीसदी तक साफ हो जाता है.

READ  मार्स पर मिले एलियन के होने के सबूत

इस प्रक्रिया के दौरान मिले गाढ़े अपशिष्ट में मैग्नीशियम ऑक्साइड मिलाया जाता है. यह फॉस्फोरस को बांधते हुए मैग्नीशियम अमोनियम फॉस्फेट (एमएपी) बनाता है. फिर एक्टिवेटेड कार्बन की मदद से इससे फॉस्फोरस को अलग किया जाता है.

इस सिस्टम की बदौलत 1,000 लीटर मूत्र से दो या तीन दिन के भीतर 70 लीटर खाद और 930 लीटर पानी हासिल किया जा सकता है. इतनी खाद को 2,000 वर्गमीटर के इलाके में इस्तेमाल किया जा सकता है. पानी की और ज्यादा प्रोसेसिंग कर उसे पीने लायक बनाया जा सकता है.

खत्म हो रही है फॉस्फेट चट्टानें
फिलहाल खाद के तौर पर इस्तेमाल होने वाला फॉस्फोरस, फॉस्फेट चट्टानों से निकाला जाता है. ये चट्टानें करोड़ों साल पहले धरती के भूगर्भीय हलचलों के दौरान बनीं. हर साल जितना फॉस्फोरस प्राकृतिक संसाधनों से निकाला जाता है, उसका 90 फीसदी इस्तेमाल कृषि और खाद्यान्न उद्योग करते हैं.

अब फॉस्फेट से समृद्ध चट्टानें धीरे धीरे कम खत्म होती जा रही हैं. नए इलाकों में ऐसी चट्टानों को खोजने का मतलब होगा, प्रकृति से नई जगह छेड़छाड़. लिहाजा अब इस जरूरी खनिज की रिसाइक्लिंग पर जोर दिया जा रहा है.

ब्रह्म मुहूर्त में जागते थे श्रीराम, जानें फायदे ( Brahma muhurta ke Fayde) , देखें यह वीडियो


हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें।

Spread the love
© Word To Word 2021 | Powered by Janta Web Solutions ®
%d bloggers like this:
Secured By miniOrange