यूं ही नहीं मेरे शब्दों का जमाना दीवाना है
कोरोना तो महज एक बहाना है,
असल मकसद तो कर्मफल चुकाना है।
सालों से पिंजरे में कैद थी चिड़िया,
अब दिन रात तुम्हें कैद में बिताना है।
ईश्वर के पास है सबकी साँसों का हिसाब,
आत्माओं तुम्हें बस पिंजरा छोड़ कर जाना है।
खुदा ने तुझे बस औकात दिखाई है इंसान,
जमीन पर आ गया वो,
जो कहता था कदमों में जमाना है।
अमीरों गरीबों को बहुत रौंदा है तुमने हरदम,
उनके खून-पसीने, आंसू का कर्ज तो चुकाना है।
“उज्जैनी” की कलम झूठ कहाँ कह पाती है कभी,
यूं ही नहीं मेरे शब्दों का जमाना दीवाना है।
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