लॉकडाउन के कारण दुनिया भर में हवा की गुणवत्ता में जबरदस्त सुधार
भारत समेत दुनिया की एक तिहाई जनसंख्या अपने घरों में कैद है. कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए किए गए इस लॉकडाउन एक सुकून भरी खबर भी है. गाड़ियों की आवाजाही पर रोक लगने और ज्यादातर कारखानें बंद होने के बाद दुनिया समेत देश के कई शहरों की हवा की क्वालिटी में जबरदस्त सुधार देखने को मिला है. जिन शहरों की एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI खतरे के निशान से ऊपर होते थे. वहां आसमान गहरा नीला दिखने लगा है.
कितना कम हुआ प्रदूषण
परिवहन, जो वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का लगभग एक चौथाई हिस्सा बनाता था, उसमें गिरावट आई है. न तो सड़कों पर गाड़ियां चल रही हैं और न ही आसमान में हवाई जहाज. बिजली उत्पादन और औद्योगिक इकाइयों जैसे अन्य क्षेत्रों में भी बड़ी गिरावट आई है. इससे वातावरण में डस्ट पार्टिकल न के बराबर हैं और कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन भी सामान्य से बहुत अधिक नीचे आ गया है. इस तरह की हवा बेहद लाभदायक है. इसके अलावा रुक-रुक कर हुई बारिश ने भी धूल के कण और कार्बन पार्टिकल को आसमान से जमीन पर नीचे बैठाने का काम किया. इससे भारत, चीन, अमेरिका, इटली, स्पेन और यूके के कई प्रमुख शहरों में जहरीली गैस का उत्सर्जन थमने से वायु गुणवत्ता बेहतर हुई है.
चीन में, उपग्रह चित्रों ने प्रदूषण के स्तर में एक नाटकीय गिरावट दिखाई है. एक रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन के उपायों से वर्ष की शुरुआत में उत्सर्जन में 25 प्रतिशत की गिरावट आई और 337 शहरों में ‘अच्छी गुणवत्ता की हवा’ के अनुपात में 11.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
न्यूयॉर्क में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर पिछले साल की तुलना में 50 प्रतिशत कम हो गया है. उत्तरी इटली में नाइट्रोजनऑक्साइड में अचानक गिरावट देखी गई.
हालांकि इससे पहले जब-जब इस तरह की आर्थिक मंदी आई है, दुनियाभर में प्रदूषण का स्तर कम होने के बाद दोबारा बेहद तेजी से बढ़ा है. 1973 और 1979 का तेल संकट, USSR का पतन, और 1997 के एशियाई वित्तीय संकट कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो दोबारा बढ़ते प्रदूषण के दावों को मजबूती देते हैं.