ये हैं टीवी के असली अविष्कारक

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जब भी टेलीविजन के आविष्कारक की बात आती है तो जो सबसे पहला नाम मन में आता है वो है जे एल बेयर्ड का. लेकिन असल में ऐसा नहीं है. टेलीविजन के आविष्कारक कौन हैं इस बात पर आज भी लोगों के बीच मतभेद नजर आते हैं. टेलीविजन के आविष्कार का श्रेय लेने का किस्सा भी दरअसल हवाई जहाज के आविष्कारकों के जैसा ही है. जिसके निर्माण में तो कई लोग लगे थे लेकिन जब यह बनकर तैयार हुआ तो मात्र कुछ लोगों को इसका श्रेय मिल पाया और बाकियों को लोगों ने भुला दिया.

अगर किसी एक को श्रेय देने की बात आये तो यह फिलो टी फार्न्सवर्थ को मिलना चाहिए. इसका कारण यह है कि टेलीविजन के पूरे इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम का पेटेंट उनके ही नाम पर है. फार्न्सवर्थ ने अपनी किशोरावस्था के दिनों में ही टेलीविजन पिक्चर्स के ट्रांसमिशन पर काम करना शुरू कर दिया था. 1927 में 21 साल की उम्र में उन्होंने एक इलेक्ट्रोनिक ट्रांसमीटर और रिसीवर का डेमोंस्ट्रेशन दिखाया. इसके द्वारा जो चित्र भेजा गया था वह केवल एक वर्ग के बीच में खींची गयी एक लकीर की थी.

1930 में फार्न्सवर्थ ने इसके पेटेंट के लिए अप्लाई कर दिया लेकिन उनके साथ ही इस आविष्कार पर किसी और ने भी अपना दावा ठोंक रखा था. लेकिन आखिरकार फार्न्सवर्थ पेटेंटकर्ताओं को यह समझाने में सफल रहे कि इस आविष्कार पर दावा करने वाले लोगों में से कोई भी इसे 1931 से पहले नहीं बना पाया था. साथ ही उन्होंने अपने स्कूल टीचर की मदद से यह भी साबित कर दिया कि इस आविष्कार का आइडिया उन्हें स्कूल के दौरान ही आया था. और इस तरह 1935 में टेलीविजन के पूरे सिस्टम का पेटेंट फार्न्सवर्थ के नाम कर दिया गया. इसलिए फार्न्सवर्थ को ही टेलीविजन का जनक माना जाता है.

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तो फिर जे एल बेयर्ड क्यों?

अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि जॉन लागी बेयर्ड को टेलीविजन का आविष्कारक क्यों कहा जाता है? असल में स्कॉटलैंड के रहने वाले बेयर्ड ने टेलीविजन ट्रांसमिशन का एक मैकेनिकल सिस्टम तैयार किया था जिसे उन्होंने 1925 में टेस्ट किया और 1926 में इसे सबके सामने प्रदर्शित भी किया. यह दुनिया की सबसे पहली हिलती डुलती तस्वीर का ट्रांसमिशन था. इसके अलावा बेयर्ड ने 1925 में पहली बार किसी मनुष्य को लाइव ब्रॉडकास्ट करने का काम किया था. सबसे पहला कलर ट्रांसमिशन, ट्रांसअटलांटिक ट्रांसमिशन और स्टीरियोस्कोपिक ब्रॉडकास्ट भी बेयर्ड के संचालन में ही किया गया था. यही वजह है कि जे एल बेयर्ड को टेलीविजन का आविष्कारक माना जाता है.

लेकिन असल में टेलीविजन के आविष्कारकों की फेहरिस्त काफी लंबी है. शुरुआत में इस टीवी का रिजॉल्यूशन 30 था जो कि कुछ सुधारों के बाद 1939 में 240 तक पहुँच गया था. इसके कुछ ही समय बाद फिलो टी फार्न्सवर्थ द्वारा निर्मित इलेक्ट्रॉनिक टेलीविजन का निर्माण शुरू हो गया जिसने बेयर्ड के टेलीविजन को पीछे छोड़ते हुए चारों तरफ अपनी पैठ बना ली.

2 तरह की होती है टीवी

अब तक आप यह तो समझ ही गए होगे कि टीवी दो तरह की होती है मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल. जब पहली बार 1920 में मैकेनिकल टीवी का आविष्कार किया गया तब इसमें एक स्पाइरल पैटर्न में बने एक छेद में एक घूमने वाली डिस्क लगी होती थी. इसे बनाने वाले दो लोग थे, स्कॉटलैंड के जे एल बेयर्ड और अमेरिका चार्ल्स फ्रांसिस जेंकिस. हालांकि इससे भी पहले एक जर्मन आविष्कारक पॉल गॉटलिब निपको मैकेनिकल टीवी बना चुके थे जिसमें वायर और घूमने वाली मेटल डिस्क के द्वारा इमेज भेजी जा सकती थी. लेकिन उन्होंने इसे टीवी के बजाय इलेक्ट्रिक टेलीस्कोप का नाम दिया था.

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इसके बाद और भी कई लोगों ने अपने अपने तरीके से टीवी का निर्माण किया. लेकिन जो सबसे सफलतम आविष्कार रहा वह था 1927 में बना दुनिया का पहला इलेक्ट्रिकल टेलीविजन. इसे बनाने वाले थे फिलो टेलर फार्न्सवर्थ. अपने स्कूल के वक्त से ही वे एक ऐसा सिस्टम बनाने की कोशिश कर रहे थे जो चलती फिरती इमेजेस को कैप्चर कर उन्हें कोड में बदल सके और बाद में उन्हें रेडियो तरंगों के माध्यम से अलग अलग डिवाइस में भेज सके.

कैसे काम करता है मैकेनिकल टीवी

मैकेनिकल और इलेक्ट्रॉनिक टीवी के काम करने का तरीका बिलकुल अलग होता है. मैकेनिकल टीवी में इमेज को ट्रांसमिट करने के लिए घूमने वाली डिस्क का इस्तेमाल किया जाता है जिससे इमेज ट्रांसमीटर से रिसीवर तक पहुँचती हैं. इन डिस्क में छेद बने होते हैं. हर छेद दूसरे से थोडा नीचे होता है. इमेज के ट्रांसमिशन के लिए एक अँधेरे कमरे में एक कैमरा रखा जाता है और फिर डिस्क के पीछे तेज रोशनी की जाती है और डिस्क को एक मोटर की मदद से घुमाया जाता है. बेयर्ड के मैकेनिकल टेलीविजन में ऐसे 30 छेद थे और इसमें लगे डिस्क को एक सेकेण्ड में 12.5 बार घुमाया जाता था. इसके घूमने की दर टेलीविजन पिक्चर की फ्रेम रेट होती थी. डिस्क के सामने एक लेंस लगी होती थी जो लाईट को सब्जेक्ट के ऊपर फोकस करने में मदद करती थी. यह लाईट सब्जेक्ट से परिवर्तित होकर फोटोइलेक्त्रिक सेल पर पड़ती है जो इसे इलेक्ट्रिक तरंगों में बदल देता है. यह तरंगें रिसीवर तक पहुँचती हैं रिसीवर पर भी एक डिस्क लगी होती है जो ट्रांसमीटर के कैमरा पर लगी डिस्क की गति से ही घूम रही होती है. रिसीवर द्वारा रिसीव किया जाने वाला ट्रांसमिशन डिस्क के पीछे लगे नियॉन लैम्प से कनेक्टेड होता है. यह लैम्प लाईट को रिसीवर से मिलने वाले इलेक्ट्रिकल सिग्नल के मुताबिक़ व्यवस्थित तरीके से निकलता है. जिससे डिस्क के दूसरी तरफ इमेज को देखा जा सकता है.

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कैसे काम करता है इलेक्ट्रिक टेलीविजन

इलेक्ट्रिक टेलीविजन इलेक्ट्रॉनिक टीवी कैथोड रे टेक्नोलॉजी पर आधारित होती है जिसमें दो या इससे अधिक एनोड यानि पॉजीटिव टर्मिनल होते हैं. कैथोड निगेटिव टर्मिनल होता है. इसमें एक वैकम ट्यूब लगा होता है जिसमें यह इलेक्ट्रोन रिलीज करता है. यह इलेक्ट्रोन निगेटिव चार्ज्ड होते हैं और पॉजिटिव चार्ज्ड एनोड की तरफ आकर्षित होते हैं. ये एनोड ट्यूब के अंतिम सिरे पर जहाँ स्क्रीन लगी होती है वहां पहुँच जाते हैं और स्क्रीन पर तस्वीरें दिखने लगती हैं. टेलीविजन स्क्रीन भी मामूली शीशे की बनी नहीं होती हैं इसे फॉस्फर से कोटेड किया जाता है. इसी पर इलेक्ट्रोन इमेज को उभारते हैं. इसके बाद बदलते जमाने के साथ टीवी भी पूरी तरह बदल गया और इलेक्ट्रिक टीवी की जगह एलसीडी टीवी ने ले ली. और अब एलसीडी टीवी से भी बेहतर पिक्चर क्वालिटी देने वाली एलईडी टीवी भी आ गयी हैं.

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