आसियान देशों के मुक्त व्यापार समझौते से भारत क्यों हुआ बाहर

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भारत ने आसियान देशों के प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते आरसीईपी यानी रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप में शामिल नहीं होने का फ़ैसला किया है. दरअसल आरसीईपी में शामिल होने को लेकर भारत की कुछ मुद्दों पर चिंताएं थीं, जिसके कारण देश हित में यह क़दम उठाया गया है. भारतीयों और ख़ासकर समाज के कमज़ोर वर्गों के लोगों और उनकी आजीविका पर होने वाले प्रभाव के बारे में सोचकर सरकार ने यह फ़ैसला लिया है.

समझौता में क्या था

आरसीईपी एक व्यापार समझौता है, जो इसके सदस्य देशों के लिए एक-दूसरे के साथ व्यापार करने को आसान बनाता है. इस समझौते के तहत सदस्य देशों को आयात-निर्यात पर लगने वाला टैक्स या तो भरना ही नहीं पड़ता या फिर बहुत कम भरना पड़ता है.

आरसीईपी में 10 आसियान देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के शामिल होने का प्रावधान था. अब भारत इससे दूर रहेगा.

आरसीईपी को लेकर भारत में लंबे समय से चिंताएं जताई जा रही थीं. किसान और व्यापारी संगठन इसका यह कहते हुए विरोध कर रहे थे कि अगर भारत इसमें शामिल हुआ तो पहले से परेशान किसान और छोटे व्यापारी तबाह हो जाएंगे.

समझौते से क्या नुकसान होते

दो-तीन वर्गों पर इस समझौते के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं. भारत अगर ये समझौता कर लेता तो न्यूज़ीलैंड से दूध के पाउडर के आयात के चलते भारत का दूध का पूरा उद्योग ठप पड़ जाता. किसानी-खेती की बात करें तो इस समझौते के बाद नारियल, काली मिर्च, रबर, गेहूं और तिलहन के दाम गिर जाने का खतरा था. छोटे व्यापारियों का धंधा चौपट होने का खतरा था.

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आरसीईपी को लेकर केंद्र सरकार के उच्च-स्तरीय सलाहकार समूह ने अपनी राय देते हुए कहा था कि भारत को इसमें शामिल होना चाहिए. क्योंकि अगर भारत आरसीईपी से बाहर रहता है तो वो एक बड़े क्षेत्रीय बाज़ार से बाहर हो जाएगा.

दूसरी तरफ़ भारत के उत्पादकों और किसानों की चिंता थी कि मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर भारत का अनुभव पहले ठीक नहीं रहा है और आरसीईपी में भारत जिन देशों के साथ शामिल होगा, उनसे भारत आयात अधिक करता है और निर्यात कम.

साथ ही चीन आरसीईपी का ज़्यादा समर्थन कर रहा है, जिसके साथ भारत का व्यापारिक घाटा पहले ही अधिक है. ऐसे में आरसीईपी भारत की स्थिति को और ख़राब कर सकता है.

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