कहीं आपके घर की हवा भी जहरीली तो नहीं है
हम अपना 90 फ़ीसदी समय घर, दफ़्तर या स्कूल के अंदर बिताते हैं, जहां की हवा की गुणवत्ता ख़राब हो सकती है. वेंटिलेशन सही नहीं होने पर साज-सामान से निकलने वाली गैस, खाना पकाने से अलग होने वाले कण वगैरह मिलकर हवा को ख़राब करते रहते हैं.
इससे ना केवल श्रमिकों की उत्पादकता घटती है बल्कि स्कूली छात्रों के नंबर और उनकी उपस्थिति भी कम होती है. साथ ही यह “सिक बिल्डिंग सिंड्रोम” को भी न्योता देता है. इसमें किसी ख़ास इमारत में रहने पर सिरदर्द, गले में खराश और उल्टी आने जैसे लक्षण दिखते हैं.
कुछ सकारात्मक प्रवृत्तियां भी सामने आई हैं, जैसे- बिल्डिंग कोड. इसमें ऊर्जा बचाने और हरियाली बढ़ाने के उपायों को प्रमाणित किया जाता है और इमारत के अंदर की हवा सुधारने वाले उपायों को अंक दिए जाते हैं. यूएस ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल की LEED प्रणाली ऐसी ही व्यवस्था है. ऐसी इमारतों की तादाद बढ़ रही है. अमरीका में 2006 से 2018 के बीच LEED से पंजीकृत इमारतों की संख्या 200 गुणा बढ़ी है.
नई इमारतें, नया विज्ञान
हवा की गुणवत्ता को बरकरार रखना और ऊर्जा की बचत हमेशा एक साथ नहीं हो पाता. 1983 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पाया था कि जिन इमारतों की खिड़कियां नहीं खुलतीं उनमें सिक बिल्डिंग सिंड्रोम का ख़तरा रहता है.
1970 के दशक में ऊर्जा की बचत के लिए घरों और दफ्तरों को अधिक से अधिक बंद रखने की शुरुआत हुई थी. तब से ज़्यादा लोग बीमार पड़ने लगे. 1980 और 1990 के दशक में सिक बिल्डिंग सिंड्रोम के शुरुआती मामलों की जांच की गयी थी.
जांच में एक इमारत को देखा गया जिसकी डिजाइन बुरी तरह बिगड़ गई थी. उस दफ़्तर के वॉशरूम हाइड्रोलिक लिफ्ट के बगल में थे, जहां स्वचालित दुर्गंधनाशक लगे हुए थे. जब भी लिफ्ट चलती थी, वहां एक निर्वात पैदा होता था, जिससे थोड़ा दुर्गंधनाशक बाहर निकल आता था. लिफ्ट जब अगली मंजिल पर खुलती तो भी थोड़ा केमिकल बाहर आता था. इस तरह से हर फ्लोर पर उसकी गंध फैली रहती थी. इससे इसके प्रति सेंसिटिव लोगों को तकलीफ होनी शुरू हो गयी. इस दौरान घर के अन्दर की हवा की गुणवत्ता को बनाये रखने के मामले में लोगों में कोई जागरूकता नहीं थी.
कैसे खराब होती है गुणवत्ता
इमारतें डायनेमिक होती हैं, जिसे कुछ लोग नहीं समझते. उनमें सैकड़ों लोगों की छोड़ी हुई सांसें होती हैं, ड्राई-क्लीन हुए कपड़ों से निकलने वाली गैस होती हैं, डेस्क पर लगे पौधों में डली खाद होती है, जूतों की धूल होती है.
मशीनी वेंटिलेशन से अंदर की हवा को बाहर भेजा जाता है और बाहर की हवा अंदर खींची जाती है या संभव हो तो खिड़कियां खोली जाती हैं. गर्मी के दिनों में उमस बढ़ने से ये इमारतें फूल जाती हैं, सर्दियों में सिकुड़ जाती हैं. वे अचल नहीं रहतीं. इस सबके बावजूद भी ऐसी इमारतों की संख्या कम नहीं है जो पूरी तरह से बंद होती हैं.
क्या फर्क पड़ता है इंसानी शरीर और दिमाग पर
एक बार एक दफ़्तर के कर्मचारियों के चेहरे के एक हिस्से में लकवा लगने या मांसपेशियों के कमजोर पड़ने के मामले बढ़ने की जांच की गयी थी. उस मामले में इमारत की अंदरूनी हवा में लीक होने वाले वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के भूमिगत ढेर मिले थे.
बंद बिल्डिंग के अन्दर रहने वालों को यह समझने की जरूरत है कि इमारतों की डिजाइन सुधारकर वह सेहत समस्याओं को कैसे दूर कर सकते हैं. ग्रीन बिल्डिंग योजनाओं में इमारतों को कुछ डिजाइन लक्ष्य हासिल करने के अंक दिए जाते हैं, जैसे- पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों का इस्तेमाल या ऊर्जा खपत में कटौती आदि. कुछ अंक इमारतों की आंतरिक हवा की गुणवत्ता के भी दिए जाते हैं, जिनमें वेंटिलेशन शामिल होता है.
कितनी अच्छी है हरित इमारतें
ऐसा लग सकता है कि हरित इमारतें हवा की गुणवत्ता के लिए बेहतर हों, लेकिन ज़रूरी नहीं कि यह सच हो. हरित और अन्य इमारतों की हवा की गुणवत्ता की तुलना बहुत कम लोगों ने की है. इससे भी कम लोग सेहत और उत्पादकता के साथ इसके रिश्ते की जांच कर रहे हैं. विभिन्न योजनाओं में हवा को बराबर वरीयता भी नहीं दी गई है. यदि किसी इमारत ने ऊर्जा खपत घटाकर भरपूर अंक हासिल कर लिए हैं तो यह ज़रूरी नहीं कि उसके डिजाइनर हवा की गुणवत्ता के अंक पाने की कोशिश करेंगे ही.
सिंगापुर की हरित इमारतों और ग़ैर-हरित इमारतों के बारे में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है. हरित इमारतों में सूक्ष्म कण, बैक्टिरिया और फंगस का स्तर कम पाया गया. यहां आर्द्रता और तापमान का स्तर भी अधिक सुसंगत था. 300 से ज़्यादा कर्मचारियों का इंटरव्यू लिया गया. उनमें से जो हरित इमारतों में काम करने वाले थे उनमें सिरदर्द, खुजली और काम के दौरान थकान का ख़तरा कम था. हालांकि इस अध्ययन में लंबी अवधि के स्वास्थ्य पर शोध नहीं किया गया था. लेकिन यह एक शुरुआत है.
सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि आंतरिक सजावट, साज-सामान और पेंट के लिए ऐसा बाज़ार तैयार हुआ है जो हवा का ध्यान रखता है. दस साल पहले ऐसे विकल्प बहुत कम थे. हालांकि यह बहुत मुश्किल था. मिसाल के लिए ऐसा पेंट ढूंढ़ना जो कम कार्बनिक उत्सर्जन के दिशानिर्देशों पर खरा उतरता हो. 10 साल पहले तक यह नहीं मिलता था, लेकिन अब यह आसानी से इस्तेमाल होता है.
आसान सुधार
अच्छी हवा के लिए फैंसी या नई इमारत की ज़रूरत नहीं है. पुरानी इमारतों की थोड़ी सी देखभाल करने से वे भी बेहतर हो सकती हैं. इसका मतलब है कि मशीनी वेंटिलेशन सिस्टम को ज़्यादा चलाना और जब भी बाहर हवा साफ हो तब खिड़कियां खोल देना या फिर पुरानी वेंटिलेशन व्यवस्था को फिर से लगाना जिससे इमारत में उमस कम हो और ठंडी हवा अंदर आए.
पंखों को लंबे समय तक चलाने में पैसे लगते हैं. जो बिल्डिंगें खुली खिड़की के लिए डिजाइन की जाती हैं, उनकी खिड़कियां भी बंद रखी जाती हैं और अंदर के लोगों की सेहत के साथ समझौता कर लिया जाता है. तो अगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तो अपने घर और दफ्तर की हवा की गुणवत्ता को जरूर परखें.
(Source: BBC )