डिजिटल हुए भिखारी, अलीपे और वीचैट वॉलेट से मांग रहे भीख
चीन में भिखारी भी अब डिजिटल हो चुके हैं। वे भीख मांगने के लिए क्यूआर कोड और ई-वॉलेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे उनकी हफ्ते की कमाई 45 हजार रुपये तक हो रही है।
वजह यह है कि यहां की कई ई-वॉलेट कंपनियों ने भिखारियों को क्यूआर कोड उपलब्ध करवा दिया है। क्यूआर कोड के स्कैन करते ही भीख देने वालों का डाटा इन कंपनियों के पास पहुंच जाता है। ये कंपनियां डाटा को बेचकर अच्छी खासी रकम जुटा रही हैं।
टूरिस्ट प्लेस पर फल फूल रहा है धंधा
चीन में अलीबाबा की अलीपे और वी चैट बड़ी ई-वॉलेट कंपनियों में शामिल हैं। चीन के पर्यटन स्थलों और सब-वे स्टेशनों के आसपास ऐसे भिखारी देखे जा सकते हैं, जिनके पास डिजिटल पेमेंट या क्यूआर कोड सिस्टम मौजूद है।
दरअसल, चीन में भिखारियों के डिजिटल होने की बड़ी वजह यह है कि उन्हें आसानी से भीख मिल जाए और कोई छुट्टे पैसे नहीं होने का बहाना भी न बना पाए। यानी जिनके पास छुट्टे पैसे नहीं है, वे भी क्यूआर कोड को स्कैन कर भिखारी की मदद कर सकते हैं।
भिखमंगी में उतर रहा है बाजार
ये क्यूआर का प्रिंटआउट दिखाकर लोगों से अनुरोध करते हैं कि वे अलीबाबा ग्रुप के अली पे या टैन्सेंट के वीचैट वॉलेट के माध्यम से इन कोड को स्कैन कर उन्हें भीख दें। यानी देखा जाए तो भिखमंगी के इस व्यवस्था में अब बाजार जुड़ गया है। कई तरह के स्पांसर्ड कोड आ गए हैं। भिखारी को अगर कोई कुछ न दे, लेकिन सिर्फ स्पांसर्ड क्यूआर कोड को स्कैन कर दे तो भी उसे कुछ न कुछ रकम मिल जाती है। इसके जरिए भीख देने वालों का डाटा कंपनियों के पास चला जाता है।
क्यूआर कोड से ही शॉपिंग
चीन में भिखारियों को अपना खाता संचालित करने के लिए मोबाइल फोन की जरूरत नहीं है। क्यूआर कोड से मिली रकम सीधे उनके डिजिटल वॉलेट में चली जाती है। इसी क्यूआर शीट के जरिए वह किराना दुकान या अन्य स्टोर्स से सामान खरीद सकता है। इसमें खास बात यह है कि इसे चलाने के लिए बैंक खाते की भी जरूरत नहीं होती।