बच्चों के बेस्ट फ्रेंड के साथ ही एक अच्छे जीवनसाथी भी हैं आज के पिता

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मेरे कपड़े कहां हैं? मेरा फेवरेट नाश्ता… अरे वाह…पर, आपने मेरा स्कूल बैग ठीक किया कि नहीं? यह कृष के स्कूल जाने से पहले का समय है। अगर आपको लग रहा है कि उसके ये सारे सवाल-जवाब मां से हो रहे हैं, तो आप गलत हैं, क्योंकि कृष के स्कूल जाने से पहले के सारे काम उसके पापा के जिम्मे हैं। वह पापा जो सुबह मम्मी के साथ सिर्फ इसलिए उठते हैं, ताकि बेटे को समय पर स्कूल भेज सकें। कृष के पापा, पिताओं की उस जमात से आते हैं, जिन्हें खड़ूस पापा बनने का जरा भी शौक नहीं है, बल्कि जो अपने बच्चों के दोस्त बनना चाहते हैं।

आजकल के पिता अपने बच्चों के लिए वे सारे काम करना चाहते हैं, जो सालों से सिर्फ मांओं का जिम्मा समझा जाता रहा है। अब वे अपने बच्चों से दूर नहीं भाग रहे, बल्कि उनके साथ समय बिता रहे हैं और उनकी परवरिश से जुड़े तमाम कार्यों में अपनी भूमिका तय कर रहे हैं। इस तरह एक ओर वे अपने बच्चों के ज्यादा करीब पहुंच रहे हैं तो दूसरी ओर पिता की बनी-बनाई छवि को भी बदल रहे हैं।

विकास होता है दोगुना
मनोवैज्ञानिकों की मानें तो जिन बच्चों की परवरिश में माता और पिता दोनों शामिल रहते हैं उनका बेहतर विकास होता है। शोधों में यह भी पाया गया है कि जो बच्चे पिता के लालन-पालन में बड़े होते हैं, वे भावनात्मक रूप से बहुत मजबूत हो जाते हैं। उनका आत्मविश्वास ज्यादा मजबूत होता है, तो सामाजिक तौर पर भी ऐसे बच्चे ज्यादा सक्रिय होते हैं। ऐसे पापा को बेस्ट पापा का तमगा देने में बिल्कुल भी न हिचकिचाएं, जो बच्चे को खाना खिलाते हैं, नहलाते हैं, कहानियां सुनाते हैं, साथ में कलरिंग करते हैं और फिर दिल की बातें भी सुनते हैं। अगर आपके घर में भी एक ऐसे ही पापा हैं, तो थोड़ा ज्यादा खुश हो लीजिए, क्योंकि यह सब करते हुए वे आपकी चिंताएं भी तो थोड़ी साझा कर ही रहे हैं।

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नए वाले पापा बनना फायदेमंद
पिता का बच्चों के साथ उतना समय बिताना, जो मां बिताती थीं, या वह सब करना, जो सिर्फ मां के काम माने जाते थे, पूरी एक पीढ़ी को फायदा पहुंचाता है। बच्चे अपने पिता को आदर्श मानते हैं। ऐसे में अगर पिता उनके करीब रहें तो बच्चे अपने आदर्श को बेहतर तरीके से जान सकते हैं। इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि जहां पहले बच्चे सिर्फ मां को जान पाते थे, वहीं अब पिता को भी जान रहे हैं। पहले उनके बचपन के अधिकतर समय में केवल मां करीब होती थीं, पर अब पिता भी करीब हो गए हैं। इससे बच्चे पिता की खासियतें भी अपना पा रहे हैं।

मां अहमियत दे रही है खुद को
पिता बदल रहे हैं, तो मांओं को भी इसका पूरा फायदा मिल रहा है। पहले मांएं परिवार और फिर बच्चों की जिम्मेदारी से निकल ही नहीं पाती थीं, पर अब उन्हें खुद को विकसित करने का समय मिल रहा है। नए जमाने वाले पापा ने पिछले कुछ सालों में खुद को इस हद तक बदला है कि मम्मियों की जिंदगी लाख गुना आसान हो गई है। वे कुछ कम चिंताओं के बीच नौकरी कर रही हैं, तो अपने शौक को भी आगे बढ़ा रही हैं। उन्हें अब खुद के लिए कुछ ज्यादा समय मिल जाता है।

सामाजिक दायरों की चिंता नहीं
अब पिताओं को सामाजिक दायरों की चिंता नहीं होती है। जहां बड़े परिवारों में आज भी बच्चों से जुड़े काम मां के ही जिम्मे होते हैं, वहीं  ‘लोग क्या कहेंगे’ की चिंता किए बिना  आजकल के पिताओं ने बच्चों से जुड़ी जिम्मेदारियां संभाल ली हैं। उन्होंने सामाजिक नियम-कायदे मानने से इनकार कर दिया है। वे  बदलते दौर की नुमाइंदगी कर रहे हैं और यह सामाजिक तौर पर एक बड़ा बदलाव है।

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