क्या वाकई यहाँ रहती हैं जलपरियाँ, चांदनी रात में दूधिया हो जाता है पानी
हम ने फ़िल्मों में अक्सर समुद्र के ख़ौफ़नाक मंज़र देखे होंगे. समंदर की नीली-हरी सतह अचानक सफ़ेद दिखाई जाती है और उस पर तैरता हुआ जहाज़ आने वाले ख़तरे का इशारा करता मालूम होता है. ये डरावने मंज़र कई लोगों ने बहुत बार देखे होंगे.
पर, हक़ीक़त में भी कई बार समुद्र के एक बड़े इलाक़े का पानी धुंधला हो जाता है. रात में चांदनी उस पर पड़ती है, तो समंदर के ये धब्बे और भी डरावने लगने लगते हैं.
सबसे पहले इसका ज़िक्र, कैप्टेन राफ़ेल सेम्मेस ने 1864 में किया था. उनका जहाज़ सीएसएस अलाबामा समुद्र से गुज़र रहा था, तो एक जगह पानी की तस्वीरों ने उन्हें डरा दिया था. पानी का बदला हुआ रंग देख कर ऐसा लगा मानो क़ुदरत ने ही रूप बदल लिया हो. किसी और ने दूर से धुंधले पानी में तैरते जहाज़ अलाबामा को देखा होता, तो उसे यही लगता कि ये जहाज़ नहीं, समुद्री दैत्य है, जो तेज़ी से उसकी तरफ़ बढ़ रहा है.
मिल्की सी
पहले के ज़माने में ही नहीं, आज भी लोग समुद्री दैत्यों और जलपरियों में यक़ीन रखते थे. उन्हें तो ये लगता था कि इस धुंधले पानी के भीतर या तो समुद्री दैत्य हैं या फिर जलपरियां. समुद्र के पानी के एक बड़े इलाक़े में धुंधले होने को अंग्रेज़ी में मिल्की सी या मरील कहते हैं.
दरअसल इसकी वजह होते हैं, वो बैक्टीरिया, जो समुद्र की सतह से लेकर इसकी तलहटी तक आबाद होते हैं. अरबों-खरबों की तादाद में मौजूद इन कीटाणुओं की वजह से ही समुद्र के पानी का रंग बदला हुआ दिखता है.
उन्नीसवीं सदी के नाविक ऐसे मंज़र देखकर अक्सर हैरान होते थे. लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि पानी का रंग क्यों बदला है. उन्हें इसमें कोई साज़िश या ख़तरा ही नज़र आता था. दूर ये उन्हें ये दूध की तरह दिखाई देता था. इसीलिए इसे मिल्की सी कहा जाता था.
अब इसके बारे में लोगों की समझ बेहतर हुई है. लेकिन, कोई ये नहीं जानता कि ये कैसे होता है.
समुद्र के इन धुंधले धब्बों को लोग सैटेलाइट से दिखने वाली सफ़ेद व्हेल कहते हैं. पहले सैटेलाइट के सेंसर इन्हें नहीं देख पाते थे. लेकिन, अब जो सेंसर इस्तेमाल किए जाते हैं, उनसे हल्के से धब्बे को भी पकड़ लिया जा सकता है.
सैटेलाइट से इसकी सबसे बढ़िया तस्वीरें 1995 में खींची गयी थीं. तब भाप से चलने वाला एक जहाज़ लीमा सोमालिया के पास से गुज़र रहा था. तब लीमा के कैप्टेन ने दूर समंदर में धुंधले पानी के दिखने की बात कही. दूर से देख कर ऐसा लगा जैसे समंदर में बर्फ़ गिर रही है.
उस जगह पर उस समय ली गई सैटेलाइट तस्वीरों का निरीक्षण किया गया. सैटेलाइट तस्वीरों में भी वो मंज़र क़ैद हो गया था. ये इलाक़ा 15 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था.
ये दीखते तो है लेकिन इस बात के सबूत नहीं हैं कि ये कैसे बनते हैं और क्यों बनते हैं. अभी इस बारे में और जानकारी जुटाए जाने की ज़रूरत है. अब सैटेलाइट तस्वीरों से अगली बार समुद्र में बनने वाले ऐसे धुंधले मायाजाल के दिखने का इंतज़ार किया जा रहा है ताकि सच सामने आ सके.
समुद्र में हमें क़ुदरत के ऐसे और भी जादू देखने को मिलते हैं. जैसे कि अमरीका में फ्लोरिडा के तट के पास लाल ज्वार-भाटा. अभी समुद्र के ऐसे बहुत से रहस्यों से पर्दा उठाना बाकी है. नासा का तो ये कहना है कि आज वैज्ञानिकों को समुद्र से ज़्यादा जानकारी अंतरिक्ष के बारे में है.
दुनिया में तकनीक की इतनी तरक़्क़ी के बावजूद हम समुद्रों के बारे में बहुत कम जानते हैं. यही वजह है कि समुद्र की डरावनी लहरों के बीच से गुज़रने वाले नाविक आज भी सबसे साहसी माने जाते हैं.