जितने तारे समेटने है समेट लेना मेरे चाँद

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Rahul Gaurav ravyavni123@gmail.com

जब तक उनको कुछ समझ आता,

उससे पहले वही खड़ा रहा,

उनके इनकार करने तक का

इंतज़ार किया है मैंने,

आखिर कब तक शहर बदलूँ,

हालात बदलूँ, जज्बात बदलूँ,

खुद के ही घर का पता,

बदल दिया है मैंने,

जुबान में गीता और कुरान,

दोनों रखके बोला है,

कुछ हद तक अपने किरदार में,

इंसानियत को जिया है मैंने,

जितने तारे समेटने है समेट लेना मेरे चाँद,

आज रात तक का वक़्त है बस,

सुबह इशारों से तितलियों को फूलों पर,

गुनगुनाने का इंतजाम किया है मैंने,

तस्वीरों में तकदीर खोज लेना,

कागजों के वकील जितने मिल पाए रख लेना,

अभी थोड़ा सा भी कहाँ,

दुनिया को अलविदा किया है मैंने.

 

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