मैं…
मैं …मैं राहगीर हूँ, तो राह भी मैं ही हूँ.
मैं श्रमिक हूँ, तो श्रम भी मैं ही हूँ.
मैं अगर प्रयत्न हूँ, तो प्रेरणा भी मैं ही हूँ.
दिल में छुपी चाह मैं हूँ, तो दर्द में “आह” भी मैं ही हूँ.
मैं राहगीर हूँ, तो राह भी मैं ही हूँ.
अन्धकार मैं हूँ, तो प्रकाश भी मैं ही हूँ.
यश मैं हूँ, तो अहम् भी मैं ही हूँ.
हूँ अगर मैं निराश, तो आस भी मैं ही हूँ.
कठोर मन के साथ, जज्बात भी मैं ही हूँ.
मैं उदय हूँ, श्रेष्ठ हूँ, ख़ुशी हूँ,
तो मैं ही उदय हूँ, और अंत भी मैं ही हूँ.
मैं शत्रु भी हूँ, मैं ही अनुज भी.
मैं अतीत हूँ, तो भविष्य भी मैं ही हूँ.
मैं मनुष्य हूँ, तो मैं ही राक्षस भी हूँ.
मैं भटकाव हूँ, तो मैं ही बदलाव भी हूँ.
मैं अश्रु हूँ, हंसी हूँ, मैं ही पथ हूँ और पथिक भी मैं ही हूँ.
मैं प्रिय हूँ तो द्वेष भी मैं ही हूँ,
मैं ही चाहत हूँ और नफरत भी मैं ही हूँ.
मैं ही पुत्र हूँ, मैं ही पालक भी.
मैं धूप हूँ तो मैं ही छाँव भी.
मैं राहगीर हूँ, तो मैं ही राह भी…