एचआईवी मुक्त हो गया यह लन्दन पेशेंट, जानिये कैसे

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एक मरीज के भीतर एड्स के संक्रमित वायरस एचआईवी-1 की कमी का दूसरा मामला दुनिया के सामने आया है. “लंदन पेंशेट” कहे जाने वाले इस  मरीज के भीतर पिछले 19 महीनों से वायरस का कोई भी संक्रमण नहीं दिखा है. साइंस पत्रिका नेचर में छपी एक स्टडी के मुताबिक आज से दस साल पहले भी एक मरीज एचआईवी के घातक वायरस से छुटकारा पाने में सफल रहा था. इस स्टडी में कहा गया है कि दोनों मरीजों का ब्लड कैंसर के इलाज के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लाट किया गया, जिसमें जेनेटिक म्युटेशन का ध्यान रखते हुए स्टेम सेल्स दी गई. यह तरीका एचआईवी के वायरस को रोकता है.

एचआईवी वायरस पीड़ित मरीज के साथ इलाज का यह तरीका अपनाते हुए यह साबित हो गया कि पहला मामला कोई अनोखा नहीं था. अब तक एचआईवी से निपटने का तरीका सिर्फ दवाइयों को ही माना जाता रहा है. वायरस को शरीर के अंदर दबाए रखने के लिए मरीज को दवाएं लेनी पड़ती है. दुनिया भर में तकरीबन 3.7 करोड़ लोग एचआईवी से पीड़ित हैं, लेकिन इसमें से महज 59 फीसदी को ही एंटीरिटरोवायरल थैरेपी (दवाइयों से इलाज) मिल पाती है. जिस कारण हर साल तकरीबन 10 लाख लोग एचआईवी से जुड़े कारणों के चलते दम तोड़ देते हैं. हालांकि अब एचआईवी वायरस की दवाइयों के खिलाफ बढ़ती क्षमता भी वैज्ञानिकों को परेशान कर रही है. बोन मैरो ट्रांसप्लांट एचआईवी के इलाज का व्यावहारिक विकल्प नहीं है. लेकिन इस तरह के मामले और संभावित इलाज के विकल्प वैज्ञानिकों को सटीक रणनीति अपनाने में मदद करेंगे.

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कैसे काम करती है एचआईवी की दवाएं

‘प्रेप’ का पूरा नाम है – प्री एक्सपोजर प्रोफाइलैक्सिस. इसे एंटीरेट्रोवायरल ड्रग से बनाया जाता है. यह संक्रमित लोगों के शरीर में एचआईवी वायरस की संख्या को घटाता है. इस तरह उनसे किसी और को यह वायरस फैलने की संभावना कम हो जाती है. यह उन लोगों को बचाने के लिए है जिन्हें अब तक एचआईवी संक्रमण नहीं हुआ है. गर्भनिरोधक गोलियों की ही तरह इन्हें भी हर रोज लेना होता है. गर्भनिरोधक गोलियों की ही तरह यह भी 100 फीसदी असरदार है, लेकिन केवल तब तक जब मरीज इसे नियमित रूप से ले रहा हो. सैन फ्रैंसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पाया कि नियमित तौर पर लेने से लोगों में यौन संपर्क के कारण फैलने वाले एचआईवी के मामलों को 96 फीसदी तक कम किया जा सकता है. पूरे विश्व में इस समय करीब 3.69 करोड़ लोग एचआईवी ग्रस्त हैं और हर दिन 5,000 नए लोग इसके वायरस से संक्रमित हो रहे हैं.

सन 2012 से ही अमेरिका में इस्तेमाल के लिए उपलब्ध इस दवा को अब तक ऐसे केवल 10 फीसदी लोग ही लेते हैं, जिन्हें संक्रमण का गंभीर खतरा है. अमेरिका में करीब 40,000 नए लोगों को हर साल एड्स का संक्रमण होता है. अमेरिका अगले पांच सालों में नए संक्रमण को 75 फीसदी तक घटा कर इस बीमारी से छुटकारा चाहता है.

सुरक्षित है दवा

प्रेप को दवा के रूप में लेने के उतने ही दुष्प्रभाव हैं जितने एसपिरिन जैसी आम दवा के होते हैं. पेन किलर दवाओं की तरह ही इसका कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं पाया गया है. दवा के बारे में समझ की कमी के साथ साथ उसका महंगा होना एक समस्या है. कई बार हेल्थकेयर पेशेवर भी दवा सुझाने में देर या लापरवाही कर देते हैं. प्रेप लेने वालों को यह नहीं समझना चाहिए कि इससे सभी यौन संक्रमणों से बचा जा सकता है. हर्पीज, क्लेमाइडिया, गोनोरिया या सिफिलिस जैसी बीमारियों से बचने के लिए संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने में कंडोम का इस्तेमाल जरूरी है.

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