यहाँ निकम्मे लोग होते थे आदर्श व्यक्तित्व

Spread the love

कहते हैं जिस आदमी के पास रोजगार नहीं होता या वो सारा दिन खाली बैठा रहता है उसकी समाज में कोई इज्जत नहीं होती. लोग भी उसे गाहे बगाहे निकम्मे और निठल्ले होने के ताने मारते रहते हैं. लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब काम करने को अपमानजनक समझा जाता था और इन्ही निकम्मे लोगों की समाज में बड़ी इज्जत होती थी.

प्राचीन ग्रीस के दार्शनिकों के बीच काम को निंदनीय माना जाता था. अरस्तू ने काम को आजादी विरोधी बताया है तो होमर ने प्राचीन ग्रीस के अमीरों के आलसीपने को अभीष्ठ बताया. उस जमाने में शारीरिक श्रम सिर्फ महिलाओं, मजदूरों और गुलामों का काम था. लेकिन समय के साथ काम का स्वरूप बदलता चला गया.

मध्ययुग में भी हालत बेहतर नहीं हुए. उस समय काम का मतलब खेती था और खेतों में काम करना खिझाने वाला कर्तव्य था. जिसे जमींदारों की सेवा करनी थी, उसके पास खेती के अलावा और कोई चारा नहीं था. जिन लोगों के पास खेती के अलावा दूसरे विकल्प मौजूद थे वह कमाई की चिंता किए बिना जश्न मनाते थे. साल में 100 दिन इन खेतिहर मजदूरों की छुट्टियां होती थीं.

काम का मतलब ईश्वर का आदेश

वक़्त के साथ हालात बदले और 16वीं सदी में जर्मनी में धर्मशास्त्री मार्टिन लुथर ने अपने अभियान के तहत आलस्य को पाप घोषित कर दिया. उन्होंने लिखा कि इंसान का जन्म काम करने के लिए हुआ है. काम करना ईश्वर की सेवा भी है और कर्तव्य भी. इंगलिश नैतिकतावादी परंपरा में काम को ईश्वर का चुनाव माना गया. इससे पूंजीवाद के उदय में तेजी आई.

READ  कौन है वो क्रिकेटर जिसने 60 साल क्रिकेट खेला और 7000 से ज्यादा विकेट लिए

मशीनों की सेवा में

18वीं सदी में यूरोप में औद्योगिकीकरण की शुरुआत हुई. आबादी बढ़ने लगी, जमीन कम पड़ने लगी. लोग पैसे कमाने और पेट भरने के लिए देहात छोड़कर फैक्ट्रियों और आयरन फाउंड्री में काम करने आने लगे. 1850 के करीब इंगलैंड के ज्यादातर लोग दिन में 14 घंटे और हफ्ते में छह दिन काम करते थे. इन लोगों की पगार फिर भी इतनी कम होती थी कि जीने के लिए काफी नहीं थी.

घटती कीमतें, बढ़ती मजदूरी

20वीं सदी के शुरू में अमेरिकी उद्यमी हेनरी फोर्ड ने कार उद्योग में एसेंबली लाइन प्रोडक्शन शुरू किया. इस तरह पूरे उद्योग के लिए नया पैमाना तय हुआ. इस नए प्रोडक्शन लाइन के कारण फोर्ड मॉडल टी का उत्पादन 8 गुना हो गया. कारों की कीमतें तेजी से गिरीं और फोर्ड के लिए कर्मचारियों को बेहतर मेहनताना देना संभव हुआ. अब धीरे धीरे अच्छा काम करने वालों ऊंचे पद पर रहने वालों और अच्छे पैसे कमाने वालों को समाज अच्छी निगाह से देखने लगा था.

कारखानों के खुलने से एक नया सामाजिक वर्ग पैदा हुआ. प्रोलेटैरियेट. इस शब्द को गढ़ने वाले दार्शनिक कार्ल मार्क्स का कहना था कि काम इंसान की पहचान है. उनके दामाद समाजवादी पॉल लाफार्ग ने 1880 में कहा, “सभी देशों के मजदूर वर्ग में एक अजीब सा नशा है. काम के लिए प्यार और थककर चूर होने तक रहने वाला नशा.”

20वीं सदी के दौरान दुनिया के समृद्ध देशों में रोजगार मिटने लगे. उद्यमों ने उत्पादन का काम उन देशों में भेजना शुरू किया जहां मजदूर सस्ते थे. बहुत से विकासशील देशों में आज हालात ऐसे हैं जैसे यूरोप में औद्योगिकीकरण की शुरुआत में थे, सख्त शारीरिक श्रम, बाल मजदूरी, कम वेतन और सामाजिक सुरक्षा का पूरी तरह अभाव.

READ  रिलायंस जियो का अपने यूजर्स को तोहफा अगले एक साल तक मुफ्त होगी प्राइम मेंबरशिप

काम की बदलती सूरत

यूरोप में इस बीच नए रोजगार सर्विस सेक्टर में पैदा हो रहे हैं. तकनीकी और सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया में नई तरह के काम और रोजगार पैदा हो रहे हैं. बुजुर्गों की तादाद बढ़ने से बुजुर्गों की देशभाल करने वाले नर्सों की मांग बढ़ रही है. काम के घंटे कम हो रहे हैं. 1960 से 2010 के बीच जर्मनी में प्रति व्यक्ति काम 30 फीसदी कम हो गया है.

एक बार फिर दूसरों से काम कराने की जुगत

3d rendering humanoid robot working with headset and monitor

ये औद्योगिक रोबोट हैं, ये हड़ताल नहीं करते, मेहनताना नहीं मांगते और एकदम सटीक तरीके से काम करते हैं. रोबोट काम की दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रहे हैं. अमेरिकी अर्थशास्त्री जेरेमी रिफकिन का कहना है कि इस समय “तीसरी औद्योगिक क्रांति” हो रही है जो वेतन और मजदूरी वाले ज्यादातर काम को खत्म कर देगी.

तो क्या अब ये रोबोट इंसानों का काम उनसे चीन लेंगे? ये सवाल पिछले 40 साल से पूछा जा रहा है जब से हाड़ मांस के बदले लोहे और स्टील के मददगार ने कारखानों में प्रवेश किया है. लेकिन पहली बार अब विकास उस चरण में पहुंचता लग रहा है. डिजीटलाइजेशन, इंटरनेट ऑफ द थिंग्स और इंडस्ट्री 4.0 बहुत सारे रोजगार को खत्म कर देंगे और वह भी सिर्फ कारखानों में ही नहीं.

काम की सुंदर नई दुनिया

मशीनें काम करेंगी और इंसान के पास ज्यादा अहम चीजों के लिए वक्त होगा. अरस्तू की भावना में लोगों को आजादी मिलेगी. पर्यवरण सुरक्षा, बूढ़े और बीमार लोगों की सुश्रुषा और जरूरतमंदों की मदद जैसे काम फिलहाल अवैतनिक लोग करते हैं. भविष्य में काम की नई दुनिया में कर्तव्य फिर से पेशा बन जाएगा.

ब्रह्म मुहूर्त में जागते थे श्रीराम, जानें फायदे ( Brahma muhurta ke Fayde) , देखें यह वीडियो


हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें।

Spread the love
© Word To Word 2021 | Powered by Janta Web Solutions ®
%d bloggers like this:
Secured By miniOrange