नेस्ले ने माना हेल्दी नहीं है मैगी, लगा 640 करोड का जुर्माना
‘टेस्ट भी हेल्दी भी’ के दावे के साथ ‘दो मिनट में मैगी’ परोसनी वाली कंपनी नेस्ले इंडिया की मुश्किलें बढ़ गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने नेस्ले इंडिया के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) में सरकार के केस में आगे की कार्यवाही की अनुमति प्रदान कर दी। सरकार ने कथित अनुचित व्यापार तरीके अपनाने, झूठी लेबलिंग और भ्रामक विज्ञापनों को लेकर 640 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग की है। आइए बताते हैं आपको आखिर क्या है पूरा मामला…
मैगी से जुड़ा यह विवाद कुछ साल पुराना है। भारत में नूडल्स के कारोबार पर नेस्ले इंडिया के उत्पाद ‘मैगी’ का राज था। साल 2015 में देश के कई राज्यों में सैंपल लिए गए और लेड की मात्रा अधिक होने की बात सामने आई। केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकीय अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआई) मैसूरू में मैगी की जांच में लेड की मात्रा अधिक पाई गई थी। भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने मैगी के नमूनों में लैड का स्तर अत्यधिक पाए जाने के बाद मैगी नूडल्स पर रोक लगा दी थी और इसे मानव उपयोग के लिए ‘असुरक्षित और खतरनाक’ बताया था। हालांकि, बाद में कंपनी ने उत्पाद में सुधार के दावे के साथ इसे फिर भारतीय बाजार में उतारा।
उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने उसी साल लगभग 3 दशक पुराने उपभोक्ता संरक्षण कानून के एक प्रावधान का इस्तेमाल करते हुए नेस्ले इंडिया के खिलाफ एनसीडीआरसी में शिकायत दर्ज कराई थी। सरकार ने कंपनी को अनुचित व्यापार तरीके अपनाने, झूठी लेबलिंग और भ्रामक विज्ञापनों का दोषी बताते हुए 640 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग की। नेस्ले इंडिया ने एनसीडीआरसी में चल रहे मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 16 दिसंबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट इस पर स्टे लगा दिया था।
नैस्ले ने माना, हेल्दी नहीं मैगी
कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान कंपनी के वकीलों ने इस बात को स्वीकार किया मैगी में लेड की मात्रा अधिक थी। पहले तर्क दिया गया था कि लेड की मात्रा परमीसिबल सीमा के अंदर थी।
कितना खतरनाक है लेड?
डॉक्टर्स के मुताबिक लेड सेहत के लिए खतरनाक है। अधिक लेड सेवन की वजह से किडनी खराब हो सकती है और नर्वस सिस्टम डैमेज हो सकता है। तय मानक के अनुसार के किसी फूड प्रॉडक्ट में लेड की मात्रा 2.5 पीपीएम तक ही होनी चाहिए, लेकिन मैगी के नमूनों में इसकी मात्रा इससे काफी अधिक थी।
नाले किनारे बनती हैं पटना में लोकल नूडल्स
लोग खासकर बच्चे जब भी बाजार जाते हैं तो बड़े मजे से चाउमीन खाते नजर आते हैं। यह स्ट्रीट फ़ूड पटना समेत कई शहरों में धड़ल्ले से बिक रहा है। लेकिन क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि इसकी निर्माण प्रक्रिया क्या है और सेहत के लिए कितना सुरक्षित है?
ऐसे तैयार होता है कच्ची नूडल्स
छोटे-छोटे कमरों में मशीन लगाकर कच्ची नूडल्स को तैयार किया जाता है। मशीन के जरिए जिन कमरों में इसे बनाया जाता है, वहां चारों तरफ जमीन पर ही यह फैला रहता है और लोग खुले पैर इनपर चलते रहते हैं। अक्सर गंदी बस्तियों में नाले के किनारे घरों में इन्हें तैयार किया जाता है। तैयार नूडल्स के गुच्छों को सुखाने के लिए नाले किनारे जमीन पर और आसपास फैला कर रख दिया जाता है। सूखने के बाद इसे दुकानों में पहुंचाया जाता है।
उबालने के बाद खुले में छोड़ देते हैं
दुकान में पहुंचने के बाद इसे उबाला जाता है। सड़क किनारे जो लोग ठेला लगा कर नूडल्स बेचते हैं उनके यहाँ नूडल्स उबालने में उपयोग होने वाला पानी भी स्वच्छ नहीं होता है। उबालने के बाद इसे ठेले पर खुले में रख दिया जाता है। यहां इस पर धूल-मिट्टी और मक्खियाँ पड़ती रहती है। चाउमिन बनाते समय दुकानदार भी प्लास्टिक के गंदे बरतन से इसे निकालते हैं। ऐसे में ये नूडल्स खाना अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ करने जैसा है.।