कैसे रहेंगे मरकर भी जिन्दा
दुनिया में हर कोई चाहता है कि मरने के बाद भी वो लोगों के बीच जिन्दा रहे. कुछ लोग इसके लिए कुछ अलग और अनोखा करने की कोशिश करते हैं ताकि मरने के बाद भी उनका नाम जिन्दा रहे, तो कुछ प्यार में अमर हो जाने की मिसालें पेश करते नजर आते हैं. बहरहाल अगर आपकी भी कुछ ऐसी ही तमन्ना है तो आपको इसके लिए नए आइडियाज सोचने की जरूरत नहीं है. विज्ञान के पास आपकी इस समस्या का भी समाधान है.इसके लिए कब्रगाहों से जुड़ी ऐप और समाधियों पर लिखे क्यूआर कोड का सहारा लिया जा रहा है जो लोगों को मरने के बाद भी वर्चुअल दुनिया में जिंदा रखेंगे. ये कोड लोगों को मरने वालों के बारे में बताएंगे.
आपने अपने फोन और वेबसाइड पर ‘क्यूआर’ कोड बने देखे होंगे. सफेद पृष्ठभूमि पर काले रंग के चौकोर डिब्बे जैसे बनी ऐसी आकृतियां क्यूआर कोड कहलाती हैं, जिसे इमेजिंग डिवाइस मसलन कैमरे या फोन से पढ़ा जा सकता है. ये कोड उपभोक्ताओं को सही वेबसाइट पर ले जाने के लिए अकसर डिजिटल विज्ञापनों में नजर आते हैं. लेकिन अब ऐसे कोड समाधियों और कब्रों पर भी नजर आ रहे हैं. कब्र पर लगे पत्थरों पर अमूमन नाम, जन्म और मरण की तारीख जैसी थोड़ी बहुत जानकारी ही होती है. लेकिन अब इन क्यूआर कोड से जुड़ी वेबसाइट एक ऐसा वर्चुअल स्पेस है जहां रिश्तेदार और दोस्त मरने वाले व्यक्ति से जुड़ी कहानियां, फोटो और यादें साझा कर सकते हैं. इसके अलावा यहाँ अंतिम संस्कार के वक्त दिए गए श्रद्धांजलि संदेश को भी पढ़ा जा सकता है.
जर्मनी में एक ऐप “वेयर दे रेस्ट” काफी पॉपुलर हो गई है. इसे जर्मन राज्य बर्लिन-ब्रांडनब्रुर्ग में फाउंडेशन ऑफ हिस्टोरिक ग्रेवयार्ड ने शुरू किया था, जो यूजरों को सेलिब्रिटी लोगों की कब्रों और समाधि स्थल का रास्ता दिखाता है और उनकी जिंदगी के बारे में जानकारी देता है. आज यह ऐप 32 शहरों की तकरीबन 1,200 समाधियों और 45 कब्रिस्तानों की जानकारी देता है, जिन्हें असलियत में या वर्चुअली देखा जा सकता है. इस ऐप को बनाने के पीछे विचार था कि मैप, तस्वीरें, ऑडियो गाइड का इस्तेमाल कर इसे इतिहास के पाठ की तरह इस्तेमाल किया जा सके.