मछली का इस्तेमाल देगा स्किन बर्न ट्रीटमेंट को नयी दिशा

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तिलापिया साफ़ पानी में पायी जाने वाली मछली है जो पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा पसंद किये जाने वाले सीफूड्स में से एक है. लेकिन ब्राजील के डॉक्टरो और शोधकर्ताओं ने इसकी एक और खासियत खोज निकाली है. अब इस मछली की स्किन का इस्तेमाल स्किन बर्न ट्रीटमेंट के लिए भी किया जा रहा है.

ब्राजील के शोधकर्ता स्किन बर्न के उपचार के लिए एक नए तरीके की खोज में जुटे हैं. इस तकनीक में तिलापिया मछली के स्किन का उपयोग स्किन बर्न ट्रीटमेंट के लिए किया जाता है. सामान्यतः स्किन बर्न के विक्टिम को इलाज के दौरान हर दूसरे दिन बैंडेज बदलने के कारण असहनीय पीड़ा से गुजरना पड़ता है. इस तकनीक की ख़ास बात यह है कि यह ना केवल इलाज के दौरान पेशेंट को होने वाले दर्द को कम करेगा बल्कि इलाज के खर्च को भी काफी हद तक कम कर देगा. तिलपिया की स्किन को सीधे जले हुए हिस्से पर रखकर ऊपर से एक बैंडेज बाँध दिया जाता है. इसे रोज रोज बदलने की जरूरत भी नहीं पड़ती और एक बार लगाने के बाद इसे 10 दिन के बाद खोला जाता है.


काफी पहले से इसके लिए सूअर के ठंढे चमड़े और मानव कोशिकाओं का इस्तेमाल किया जाता रहा है. ये चीजें जले हुए हिस्से में नमी बनाये रखने और उनमें कोलाजन के ट्रांसफर को तेज करने में मदद करती हैं. लेकिन ये दोनों ही चीजें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाती हैं इसलिए इसके विकल्प के तौर पर तिलापिया मछली का इस्तेमाल इलाज के लिए किया जा रहा है. ब्राजील में यह मछली प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. इस मछली के स्किन में मॉइश्चर, कोलाजन टाइप 1 और 3 के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता मानव त्वचा के समकक्ष पायी गयी है.
मछली की त्वचा का आमतौर पर कोई इस्तेमाल नहीं होता और इसे फेंक दिया जाता है. ऐसे में इस वेस्ट प्रोडक्ट से ट्रीटमेंट की तकनीक चिकित्सा के क्षेत्र में कारगर साबित होगी. बर्न ट्रीटमेंट के लिए इस्तेमाल में लाये जाने वाले सल्फाडाइजीन क्रीम के मुकाबले इस ट्रीटमेंट में खर्च 75% तक कम हो जाता है.

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इस तकनीक का प्रयोग अब तक 56 पेशेंट्स के ऊपर किया जा चुका है. ख़ास बात यह है ट्रीटमेंट की सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद पेशेंट के शरीर से मछली की स्मेल बिलकुल भी नहीं आती है. तिलापिया की स्किन को स्टरलाइजिंग एजेंट्स से उपचारित करने के बाद इसे वायरस मुक्त करने के लिए रेडियेशन का सहारा लिया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में इसमें किसी भी तरह की स्मेल बाकी नहीं रह जाती है. इसके बाद इसे 2 साल तक आसानी से सुरक्षित रखा जा सकता है.

आंकड़े-
हर साल 10 लाख बर्न केस (भारत में)
लगभग 2 लाख लोग हर साल जलने से मरते हैं (भारत में)
पुरुषों के मुकाबले1.1 से 1.6 गुणा ज्यादा महिलायें हर साल जलने से मरती हैं. (भारत में)
180000 मामले मध्यम और निम्न आय वाले देशो में हर साल (दो तिहाई मामले दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों और अफ्रीका में)
1 करोड़ 10 लाख बर्न केस 2004 में (पूरी दुनिया में)
173000 बच्चे हर साल बर्न इंजरी के शिकार होते हैं बांग्लादेश में
बर्न इंजरी की वजह से 17% बच्चे अस्थायी रूप से और 18% हमेशा के लिए अक्षम हो चुके हैं बांग्लादेश, कोलंबिया, पाकिस्तान और इजिप्ट में

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