श्रावण मास में शुरू करें सोलह सोमवार का व्रत
भारतीय संस्कृति में व्रतों का बहुत महत्त्व है। सप्ताह के सात दिनों के व्रतों में भी सोमवार का व्रत काफी ख़ास है। व्रत या उपवास रखना आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत लाभप्रद है। हालांकि तथ्य यह भी है कि ज्यादातर व्रत किसी न किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए ही रखें जातें हैं। सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं। एक तो वो, जो हर सोमवार को किए जाते हैं, दूसरे वो, जो सावन के महीने में 16 सोमवार के रूप में किए जाते हैं, और तीसरे वो, जो प्रदोष तिथि के अनुसार किए जाते हैं।
सोलह सोमवार व्रत विधि
वैसे तो सारे सोमवार की व्रत विधि एक सी ही है फिर भी सोलह सोमवार जो श्रावण में रखे जाते हैं उन्हें सूर्योदय से लेकर संध्याकाल तक किया जाता है। इसके बाद विधि सहित शिव-पार्वती पूजन और सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए। जिसने व्रत को रखा हो वो दिन में एक ही बार भोजन करता है। जो सोलह सोमवार का व्रत रखना चाहते हैं वो सावन के पहले सोमवार से व्रत रखना शुरू करते हैं। इसके पूजन की विधि और सामग्री इस प्रकार है।
व्रत सामग्री और पूजन विधि
व्रत वाले दिन में ब्रह्ममुहूर्त में उठकर गंगाजल से पूजास्थल को अच्छी तरह से साफ कर लें। पूजा स्थान पर लाल वस्त्र बिछाकर शिव परिवार को वहाँ स्थापित कर लें। पूजा शुरू करते समय शिव परिवार को पंचामृत यानि दूध, दही, शहद, शक्कर, घी और गंगाजल मिलाकर स्नान करवाएँ। इसके बाद गंध, चन्दन, फूल, रोली, वस्त्र आदि अर्पित करें। शिव भगवान को सफ़ेद फ़ूल, बेलपत्र, सफ़ेद वस्त्र और गणेश जी को सिंदूर, दूर्वा, गुड़ और पीले वस्त्र चढ़ाएं। भोग लगाने के लिए शिव जी के लिए सफ़ेद और गणेश जी के लिए पीले रंग के पकवानों और लड्डुओं का प्रबंध करना चाहिए। पूजा करने के लिए भगवान शिव और गणेश के स्त्रोतों, मंत्र और स्तुति से उनका स्वागत करें।
पूजन के पश्चात कथा अवश्य कहें और सुनें। सारी तैयारी के बाद पूजा शुरू करते समय सुगंधित धूप, घी व पाँच बत्तियों के दीप और कपूर से आरती करें। इसके बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।
व्रत कथा
एक बार सनत कुमारों ने भगवान शिव से उनसे सावन का महीना प्रिय होने का कारण जानना चाहा। भोले भण्डारी ने बताया कि देवी सती ने अपने पति को हर जन्म में पाने का प्रण कर रखा था। जब देवी सती ने अपने पिता के घर अपने पति का अपमान न सह पाने के कारण अपने शरीर का त्याग कर दिया था तो कुछ समय बाद उन्होनें राजा हिमाचल और उनकी पत्नी मैना देवी के घर जन्म लिया। इस जन्म में उनका नाम पार्वती था। अपने पूर्व जन्म के प्रण के कारण उन्होने इस जन्म में भी भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए बहुत कठोर तपस्या करी। उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उनका पार्वती जी से विवाह के लिए स्वीकृति दे दी। इस प्रकार पार्वती जी का शिव जी को हर जन्म में अपना पति के रूप में पाने का प्रण पूरा हुआ। इसीलिए विशेषकर कुँवारी लड़कियां मनचाहा पति पाने के लिए सोलह सोमवार के व्रत जरूर करती हैं।
व्रत के फल
सोलह सोमवार व्रत करने से शिव-पार्वती की अनुकंपा हमारे परिवार पर हमेशा बनी रहती है और जीवन धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है। इन बातों से मेरी जिज्ञासा शांत हो गयी।